पृष्ठ:कवितावली.pdf/२२५

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कांडांक छन्दांक पृष्ठांक १६८ उ० २६ वं. २५ उ. ८३ "१०६ " १५७ २२५ २५१ २६६ २१४ १०५ ७० १३४ १४७ १७३ १२७ लं. ४६ जाकी बाँकी वीरता सुनत सहमत सूर जाके बिलोकत खोकर हात "जाके रोष दुसह त्रिदोष दाह दूरि कीन्हें जागिर न सोइए भिगोइए जनम जाय जानें जोगी अंगम, जती जमाती ध्यान धरै जात जरे सब लोक बिलोकि जाति के, सुजाति के, कुजाति के, पेदागिबस जातुधान भालु कपि केवट बिहंग जो जो जातुधानावली मत्त-कुंजर-घटा जाप की न, तप खप कियो न तमाइ जोग आय से सुभट समर्थ पाइ जायो कुल मंगन, बधावना बजायो सुनि जारि बारिकै बिधूम, बारिधि बुताइ लूम जाहिर जहान में जमानो एक भाँति भयो जिनको पुनीव बारि, धारे सिर पै पुरारि जीजै न ठाँउ, नापन गाँउ जीचे की न लालसा, दयालु महादेव ! मोहि जीव जहान में जायो जहाँ जे मद-मार-बिकार भरे जे रजनीचर बीर बिसाल जोगकथा पठई ब्रज को जोग न विराग जप जाग तप त्याग व्रत जो दससीस महीधर-ईस ___५११६ " ७३ २५८ २१५ १५० १२७ ७८ उ० ७६ २२१ १३१ १६ २३४ १३८ उ०६२ " __"६१ "६४ लं० ३७ उ० १३४ " ७१ १३८ १३६ २३३ २३६ १२१ २७६ २१३ १६० १२६ १२२ ७७ 'झूठो है, भूठो है, झूठो सदा मूमत द्वार अनेक मतंग " ४४ १५६ ११२ ३१२ ठाकुर महेस, ठकुराइन उमा सी जहाँ ठाड़े हैं नौ द्रुम डार गर्दै ८० १५२ म. १३ ३५ २१