पृष्ठ:कवितावली.pdf/२२६

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डिगति उबि असि गुर्वि कोडक छन्दक पृष्ठांक बा० ११ ११६ बा०३ ३० १२५ ३ २६७ १६६ लं० ३२ उ० ६ १४८ सन की दुति स्याम सरोरुह तब लो मलीन हीन दोन, सुख सपने न तापस को बरदायक देव तिन्ह ते खर सूकर स्वान भले तीखे तुरंग कुरंग सुरंगनि तीय-सिरोमनि सीय सजी तुलसी सबल रघुबीर जू के बालिसुत्र तू रजनीचरनाथ महा बिजटा कहत बार बार तुलसीरवरी सो तेरे बेसाहे बेसाहत औरनि तोस कहाँ दसकंधर रे तौलौं लोभ, लोलुप ललात लालची लबार १५४ उ० १२ लं० १२ उ०१२४ २६६ १२५ २२६ ११० २३७ १७२ २२३ १३३ दबकि दबारे एक बारिधि में बोरे, एक दम दुर्गम, दान दया मख कर्म दशरथ के दानि, सिरोमनि राम दानव देव प्रहीस महीस दानि जो चारि पदारथ को दिन दिन दूनी देखि दारिद दुकाल दुख दिवस छ सात जात जानिवे न, मातु धरु दुर्गम दुर्ग पहार से भारे दूंब दधि रोचना कनकथार भरि भरि दूलह श्री रघुनाथ बने दूषन विराध खर त्रिसर कबंध बधे देखि ज्वाल-जाख हाहाकार दसकंध सुनि देत संपदा समेत श्रोनिकेत जाचकनि १३ लं० ३६ बा० १३ " १७ सं० ११ मुं० ७ उ० १६०