पृष्ठ:कवितावली.pdf/२२७

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देव कहैं अपनी अपनी देवधुनी पास मुनिवास श्रीनिवास जहाँ देवनदो कहँ जो जन जान देवसरि सेवौं बामदेव गाँउ रावरे ही कांडांक छन्दांक पृष्ठांक उ० १४४ २८६ " १४० २८२ २८७ १६६ ३०७ २६४ १५४ धरम के सेतु जग मंगल के हेतु धरि धीर कहै "चलु देखिय जाइ धृत कही, अवधूत कहै। उ. १२२ अ० २३ उ० १०६ ८४ सु. ___३२ बा० १४ ___ उ० ८६ १३६ २२८ १५१ २६५ " १५३ १७१ नगर कुबेर को सुमेरु की बराबरी नगर निसान बर वाज, व्योम दुंदुभी न मिटै भवसंकट दुर्घट है नरनारि उघारि सभा मह होत नाँगो फिर कहै माँगता देखि नाम अजामिल से खल कोटि नाम अजामिल से खल तारन नाम महाराज के निबाद नीको कीजै उर नाम लिये पूत को पुनीत कियो पातकीख निपट निदरि बोले बचन कुठारपानि निपट बसेरे, अघ प्रागुन घनेरे, नर २६५ बा० १६ ___उ० १७६ ३१६ १८४ य ३१४ १८३ ० उ० १७४ आ० १ बा० २ ___ उ० १३५ पंचकोस पुन्यकोस स्वारथ परारथ को पंचवटो बर पर्नकुटी पग नूपुर श्री पहुँची करकंजनि पठया है छपद छबीले कान्ह केहू कहूँ पद कंजनि मंजु बनी पनहीं एद कोमल, स्यामल गौर कलेवर प्रबल प्रचंड बरिषंड बाहुदंड बीर प्रभु रुख पाइकै बोलाइ बाल घरनिहि २ २७७ १ १६० ० अ० २४ लं० ४२ अ. १० १२६ ३२ १६