पृष्ठ:कवितावली.pdf/२३३

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( २१ ) कांडांक छन्दांक पृष्ठांक तं० ३३ ११७ ७५ or - सूर सजाइल साजि सुबाजि सूर सिरताज महाराजनि के महाराज सेवा अनुरूप फल देत भूप कूप ज्यों सैन के कपिन को को गनै अर्बुदै सोकसमुद्र निमज्जत काढ़ि सोच संकटनि सोच संकट परत, सो जननी, सो पिता, सोइ भाइ सो सुकृती, सुचि-मंत, सुसंत उ० ४ १२ १२८ १४६ २१४ १७७ १७६ ___ " ३५ १०६ १८ ५१ हनुमान द्वै कृपालु, खाडिले लषन लाल हाट, बाट, कोट, ओट, अट्टिनि, अगार, पौरि हाट बाट हाटक पधिल चलो घी सो घने हाथिन खो हाथो मारे, घोरे पोरे सो सँहारे सुं० १४ ” २४ लं. ४०