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कवितावली


मोक्ष प्राप्त करने के उपाय ही जानता हूँ और न इस मायामय संसार में मेरे समान कोई धोखेबाज है। अच्छे कर्म तो न मैने पहले किये, न वर्तमान काल मे करता हूँ और न भविष्य में कभी करूँँगा। भलाई करना तो ब्रह्मा ने भूल से भी मेरे भाग्य मे नही लिखा। हे राम, मुझे आपकी शपथ है मेरी तो ‘राम’ नाम तक ही पहुँँच है। मै सत्य कहता हूँ क्योंकि जो आपसे झूठ बोलता है वह तीनो लोक (स्वर्ग, मर्त्य, पाताल) मे और भूत भविष्य वर्तमान तीनो काल मे झूठा है (अर्थात् कोई उसका विश्वास न करेगा)। हे कृपालु, तुलसीदास का भला तो निश्चय ही आपके द्वारा हो सकता है, अतः बलि जाऊँ देर न कीजिए, क्योकि यह शरीर क्षणभंगुर है, कब नष्ट हो जाय कुछ ठीक नही (अर्थात् कृपा करके शीघ्र ही अपनाइए)।

अलंकार—छेकोक्ति।

मूल—राग को न साज, न बिराग जोम जाग जिय,
काया नहिं छॉड़ि देत ठाटिबो कुठाट को।
मनोराज करत अकाज भयो आजु लगि,
चाहै चारु चीर पै लहै न टूक टाट को।
भयो करतार बड़े कूर को कृपालु, पायो
नाम-प्रेम-पारस हौं लालच बराट को।
‘तुलसी’ बनी है राम रावरे बनाए, ना तो,
धोबी कै सो कूकर न घर को न घाट को॥६६॥

शब्दार्थ—राग को न साज= सासारिक सुख भोग को सामग्री। राग= (सासारिक विषयो पर) प्रेम या अनुराग। काया= शरीर। कुठाट को ठाठिबो= (सासारिक सुख भोग के हेतु) अनुचित उपाय करना। मनोराज= मनोरथ, वासनाएं। अकाज= (अकार्य) हानि।चारु चीर= सुन्दर वस्त्र। पै= परतु। लहै= पाता है [लाभ से लभना (लहना) क्रिया]।टूक= टुकड़ा। टाट= सन का मोटा और भद्दा कपड़ा। करतार=(कर्तार) ईश्वर, रामचद्रजी। कूर= निकम्मा। नाम-प्रेम-पारस= राम नाम का प्रेम ही जो पारसवत् है। पारस= एक प्रकार का पत्थर जिसको छूकर लोहा सोना हो जाता है । हौं= मैं। वराट= कौड़ी। बनी है= सुधरी है। न तौ=