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कवितावली

कवितावली रामनाम को प्रभाउ, पाउ महिमा प्रताप, 'तुलसी' सो जग मानियत महामुनी सो। अति ही अभागो, अनुरागत न रामपद, मूढ़ ऐतो बड़ो अचरज देखि सुनी सो ॥७२॥ शब्दार्थ-पेटागिबस =जठराग्नि के वश, भूख के कारण । टूक = टकड़े। बिदित प्रकट है। दुनी-दुनिया, ससार । मानस-मन | काय%D शरीर । सतिभाय-सद्भाव । दगाबाज %=(फा०) धोखेबाज । पुनी- पुना, फिर। पाउ-पाया। महामुनीवाल्मीकि मुनि । अनुरागत-प्रेम करता है (अनुराग से 'अनुरागना' क्रिया बना ली)। एतो=इतना । अच- रख =आश्चर्य। भावार्थ-पेट भरने के लिए मैने अपनी जाति, अपने से ऊँची जाति. और अपने से नीची जाति अर्थात् सबसे रोटी के टुकड़े मॉग-मॉगकर खाए. यह बात ससार जानता है। मन, वचन और शरीर से अनेक पाप किए. राम का भक्त कहलाया और फिर भी बैठा ही धोखेबाज बना रहा, पर मुझ ऐसे कुटिल ने भी रामनाम के प्रभाव से महिमा और प्रताप पाया और ससार में महामुनि वाल्मीकि के समान मान्य हो गया। हे मूर्ख, इतना बडा भारी आश्चर्य देख-सुनकर भी तू बड़ा ही अभागा है जो रामचद्रजी के चरणों में प्रेम नही करता। मूल-जायो कुल मंगन, बधावनो बजायो, सुनि, भयो परिताप पाप जननी जनक को। बारे ते ललात बिललात द्वार द्वार दीन, जानत हौं चारि फल चारि ही चनक को। 'तुलसी' सो साहिब समर्थ को सुसेवक है, सुनत सिहात सोच बिधि हू गनक को। नाम, राम ! रावरो सयानो किधौं बावरो, जो करत गिरी ते गरु तन ते तनक को ॥७३॥ शब्दार्थ--जायो कुल मंगन-दरिद्रों के कुल में जन्म लिया। बधावा बमना-पानदसूचक बाजे बजना। परिताप = सताप। पाप कष्ट । बारे ते= बचपन से । ललात- ललचाता था। बिललात= बिलखाते हुए । जानत