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कवितावली


अवधि= सुना जाता है कि राम के राज्य में सबसे राजनीति के अनुसार अर्थात् योग्यता के अनुसार (बड़े से बड़ी छोटे, से छोटी) व्यवस्था की जाती थी। अवधि= सीमा। चाम की चलाई है= चमड़े का सिक्का चला दिया है, पतितो को भी उबार कर पूज्य बना दिया है।

भावार्थ—वेद पुराणों मे भी कहा गया है और लोक मे भी देखा जाता है कि रामनाम मे ही मन लगाने से सब प्रकार की भलाई है। काशी में मरते समय भी महादेवजी (मोक्ष-प्राप्ति के लिए) रामनाम जपने का ही उपदेश देते हैं, न और साधनो की ओर देखते हैं न उन पर कुछ ध्यान ही देते हैं। (यह तो वेद पुराणो की बात हुई) लोक मे भी देखा जाता है कि जो मट्ठा पीने के लिए लालायित रहते थे वे ही अब रामनाम के प्रसाद से (इतने समृद्धिशाली हो गए हैं कि) पके दूध की मलाई खाने में भी नाक भौं सिकोड़ते हैं। हे रामचद्रजी, सुना जाता है कि आपके राज्य मे तो राजनीति की पराकाष्ठा थी अर्थात् सबसे न्यायानुकूल व्यवहार किया जाता था, पर आपके नाम ने तो चमडे का सिक्का चला दिया है, अर्थात् पतितो को भी मान्य बना दिया है।

अलंकार—लोकोक्ति।

मूल—सोच-संकटनि सोच-संकट परत, जर
जरत, प्रभाव नाम ललित ललाम को।
बूड़ियौ तरति, बिगरीयौ सुधरति बात,
होत देखि दाहिनो सुभाय बिधि बाम को।
भागत अभाग, अनुरागत बिराग, भाग
जागत, आलसि ‘तुलसी’ हू से निकाम को।
धाई धारि फिरि कै गोहारि हितकारी होति,
आई मीचु मिटति जपत राम-नाम को॥७५॥

शब्दार्थ—सोच-सकटनि सोच-सकट परत= शोक-सकटों को भी शोक संकटा पड़ जाता है, अर्थात् शोक-संकट मिट जाता है। जर जरत= ज्वर भी जल जाता है अर्थात् ज्वर भी दूर हो जाता है। ललित= सुन्दर ललाम= भूषण, श्रेष्ठ। बूड़ियौ= डूबता हुआ भी। तरति= तर जाता है। बिधि बाम को स्वभाव दाहिनो होत देखियत= प्रतिकूल विधाता का