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उत्तरकांंड


स्वभाव भी अनुकूल होता हुआ जान पड़ता है, दुर्भाग्य भी सौभाग्य हो जाता है। अनुरागत बिराग= वैराग्य भी प्रेन करने लगता है, अर्थात् उदासीन भी प्रेम करने लगता है। निकाम= निकम्मा, व्यर्थ। धारि= झुड (लुटेरों का)। फिरि कै= लौटकर। गोहारि= रक्षक। मीचु= (स० मृत्यु, प्रा०

भावार्थ—रामनाम के जपते ही शोक और दुःख मिट जाते हैं। उस सुन्दर श्रेष्ठ नाम के प्रभाव से ज्वर भी दूर हो जाता है, डूबता हुआ भी पार हो जाता है, बिगड़ी हुई बात भी सुधर जाती है, प्रतिकूल विधाता भी अनुकूल हो जाता है, अभाग्य भाग जाता है, उदासीन भी प्रेम करने लगता है। तुलसीदास के समान आलसी और निकम्मे के भी भाग्य उदय हो जाते हैं। लूटने को आई हुई लुटरो की सेना भी उलटे रक्षक और हितकारी हो जाती है और आई हुई मौत भी मिट जाती है (भाव यह कि रामनाम के जपने मात्र से ही सब अमगल भी मगल हो जाते हैं, यहाँ तक कि मौत भी मिट जाती है)।

अलंकार—व्याघात से पुष्ट हेतु।

मूल—ऑधरो, अधम, जड़, जाजरो जरा जवन,
सूकर के सावक ढका ढकेल्यो मग मैं।
गिरो, हिये हहरि, ‘हराम हो हराम हन्यो’
हाय हाय करत परी गो काल-फँग मैं।
‘तुलसी’ बिसोक ह्वै त्रिलोकपति-लोक गयो,
नाम के प्रताप, बात बिदित है जग मैं।
सोई रामनाम जो सनेह सों जपत जन,
ताकी महिमा क्यों कही है जाति अगमैं॥७६॥

शब्दार्थ—आबरो= अधा। जड़= मूर्ख। जाजरो बर= वृद्धावस्था के कारण जर्जर अर्थात् निर्बल। जवन= यवन। सावन= बच्चा। ढका ढकेल्यो= धक्का देकर गिरा दिया। हिये= हृदय में। इहरि= डर के मारे। हराम= सूअर (अरबी भाषा)। ‘हराम हो हराम इन्यो’= हराम, मुझे हराम (सूअर) ने मार दिया। काल-फँग में परी गो= काल के पॅजे में फँस गया, मर गया। बिसोक= विगत शोक, शोक से रहित। त्रिलोक-पति