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कवितावली


यही तो ठीक सोना है, और जागना चाहते हो तो जीभ से अच्छी तरह से रामनाम जपो—यही ठीक जागना है।

मूल—बरन-धरम गयो, आस्रम निवास तज्यो,
त्रासन चकित सो परावनो परो सो है।
करम उपासना कुबासना बिनास्यो, ज्ञान
बचन, बिराग, बेष, जगत हरो सो है।
गोरख जगायो जोग, भगति भगायो लोग,
निगम नियोग ते सो केलि ही छरो सो है।
काय मन बचन सुभाय ‘तुलसी’ है जाहि,
रामनाम जो भरोसो, ताहू को भरोसो है॥८४॥

शब्दार्थ—त्रासन चकित= अधर्म के भय से भयभीत होकर। परावनो सो परो है= भगदड पड़ गई है, भाग गए हैं। करम उपासना कुवासना विनास्यो= कवासना ने कर्म और उपासना का नाश कर दिया। ज्ञान बचन= ज्ञानियो के से वचन बोलकर। बिराग बेघ= विरागियो का सा वेष बनाकर। इरो सो है= ठग सा लिया है। भगति भगायो लोग= लोगो को हरिभक्ति से भगा दिया है। निगम= वेद। नियोग= आज्ञा। केलि ही= खेल ही मे। छरो सो है= छल लिया है।

भावार्थ— ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र चारों वर्णों ने अपना अपना धर्म छोड़ दिया है, ब्रह्मचर्यादि आश्रमो में रहकर अपने जीवन को व्यतीत करना भी लोगों ने छोड़ दिया है। अधर्म के भय से भयभीत होकर वर्णाश्रम धर्मों में भगदड़ पड़ गई है। कुवासनाओ ने कर्म और उपासना का नाश कर दिया। ज्ञानियों के से बचन बोलकर और विरागियो का सा वेष धारण कर संसार को ठग सा लिया है। गोरख ने लोगो मे योग क्या फैलाया, उनको रामभक्ति से विमुख कर दिया तथा वेदों की आज्ञाओं को तो खेल ही में छल लिया है अर्थात् वेद की आज्ञा का कपट से निर्वाह कर देते हैं। तुलसीदास कहते हैं कि जिसको कर्म मन वचन से स्वभावतः रामनाम का भरोसा है उसी का सच्चा भरोसा है। (कलिकाल मे मोक्ष के अन्य साधन सफल नहीं हो सकते हैं)।