पृष्ठ:कवितावली.pdf/२७

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[२१] कादि कृपान, कृपा न कहूँ, पिनु काल अराल शिक्षाकि न भागे । 'सम कहा सब है, बम मैं' 'हो' पनि हुांक नृक नि जारी ॥ वैरि विदारि भये विगल, क मादा के अनु। ग्रीनि प्रतीति बड़ी तुलसी तक्ते पर पाहन पूनम लागे । (आ) क्षेमकरी शकुन वर्शन- छन्द (इ) प्रहलाद चरित्र-- ४ " (ई) उद्धव-गोपी-संवाद- ३ " (3) चित्रकूट-वन- (अ) बाहु-पीडा-वर्णन- २ "