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कवितावली

कवितावली आपनी बूझि कहै 'तुलसी, कहिबे की न बावरी बात बिये तें। पैज परे प्रहलादहु को प्रगटे प्रभु पाहन तें न हिये तें ॥१२६।। __ शब्दार्थ--अतर्जामी = अतस् ही में जानने योग्य, निर्गुण । बाहर- जामी-बाह्य जगत् म जानने योग्य, सगुण रूप। धेनु गाय । पन्दाइ =थन मे दूध उतारती हुई । लवाई = हाल की ब्याई हुई गाय । बावरी =पागलपन की सी बुरी। बिये ते= दूसरे से । पैज-(सं० प्रतिज्ञा, (प्र० पइज्जा )। भावार्थ-ईश्वर के निगुण रूप से सगुण रूप श्रेष्ठ है, क्योंकि सगुण रूप ईश्वर नाम लेते ही अपने भक्त पर कृपा करने को उसी प्रकार दौड़ पाते हैं जैसे हाल की ब्याई हुई गाय दूर से अपने बछडे का रेभाना सुनते ही स्तनो में दूध उतारकर दौड़ी पाती है। तुलसीदास कहते हैं कि मैं अपनी समझ से कहता हूँ, अपनी पागलपने की सी बाते दूसरे से कहने योग्य नहीं हैं। प्रसाद की प्रतिमा का निर्वाह करने के लिए भगवान् पत्थर से प्रकट हुए, न कि हृदय से। बालक बोलि दियो बलि काल को, कायर कोटि कुचाल चलाई। पापी है बाप, बड़े परिताप ते आनो ओर ते खारिन लाई। भूरि दई विषमूरि, भई प्रहलाद सुधाई सुधा को मलाई । रामकृपा 'तुलसी' जन को, जग होत भले को भलोई भलाई ॥१३०॥ शब्दार्थ-बालक-पुत्र (प्रह्लाद) । खोरि न लाई कसर न की । भूरि = बहुत । सुधाई - सीधेपन के कारण । सुधा=अमृत । जन-भक्त। भावार्थ-हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र प्रह्लाद को बुलाकर काल को बलि दे दिया। उस कायर ने पुत्र को मारने के लिये करोड़ों कुचाले चली। वह बड़ा पापी पिता था, अतः उसने अपने पुत्र को बड़े बड़े कष्ट देने में अपनी श्रोर से कुछ कसरन की। प्रह्लाद को बहुत सी विष-सूले दी, पर प्रह्लाद की सिधाई के कारण वह भी अमृत की मलाई के समान गुणकारी हुई । तुलसी- दास कहते हैं कि इसका कारण भकों पर रामचन्द्र जी की कृपा है, और ससार में रामकृपा से भले आदमी को मलाई ही भलाई है।