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उत्तरकाण्ड

उत्तरकांड कंस करी ब्रजबासिन पै करतूति कुभाँति, चली न चलाई। पांडु के पूत सपूत, कुपूत सुजोधन भो कलि छोटो छलाई । कान्ह कृपाल बड़े नतपालु गए खल खेचर खीस खलाई। ठीक प्रतीति कहै 'तुलसी' जग होइ भले को भलोई भलाई ॥१३१॥ शब्दार्थ--सुजोधन = दुर्योधन का ही नाम है। भो = हुा । कलि छोटो = कलियुग का छोटा भाई । छलाई छल मे। कान्ह %= कृष्णजी। नतपालु-शरण में आए हुए के रक्षक 1 नत = मुका हुअा (सं० नम्= झुकना) । खेचर-(खे=आकाश मे चर-भ्रमण करनेवाले ) राक्षस घमडी वा अत्याचारी। खीस गए 3 नष्ट हो गए। खलाई = दुष्टता के कारण । भावार्थ-कस ने व्रजवासियों से बहुत बुरा व्यवहार किया, पर (अज- वासियो के रक्षक कृष्णा थे, अतः) उसके किए कुछ न हो सका, पाडु के पुत्र सुपुत्र थे, और कुपुत्र दुर्योधन तो बन करने में इतना निपुण था मानो वह कलियुग का छोटा भाई हो; (पर कृष्णजी पाडवो के सहायक थे अतः उनको कुछ भी हानि न पहुँचा सका) कृष्णजी बडे कृपालु और शरणागतो के रक्षक हैं. श्रतः अपनी दुष्टता के कारण दुष्ट अत्याचारी नष्ट हो गए। तुलसीदास विश्वासपूर्वक ठीक कहते हैं कि संसार में भले को भलाई ही भलाई है। अवनीस अनेक भए अवनी जिनके डर ते सुर सोच सुखाहीं। मानव-दानव-देव-सतावन रावन घाटि रच्यो जग माहीं। ते मिलए धरि धूरि, सुजोधन जे चलते बहु छत्र की छॉही। बेद पुरान कहै, जग जान, गुमान गबिदहि भावत नाहीं ॥१३२॥ शब्दार्थ-अवनीस =(सं० अवनि - पृथ्वी+ईश ) राजा । दानव = कश्यप की दनु माम्नी स्त्री से उत्पन्न संतान दानव कहलाती है (दानव लोग भी देवताओं के वैरी थे)। सतावन - सतानेवाला । घाटि रच्यो-बुराई का आयोजन किया। ते-वे। जग जान ससार भी जानता है। गुमान अभिमान | भावत - अच्छा लगना । जे चलते बहु छत्र की छॉही = जिनके