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उत्तरकांंड


रज-तम इन तीनो गुणो से परे, त्रिपुर का नाश करनेवाले और देवताओं में श्रेष्ठ ऐसे शिवजी की जय हो।

'मूम—अर्थ-अंग अंगना, जोगीम जोगपति।
विषम असन, दिग-बसन, नाम बिस्वेस विस्वगति।
कर कपाल, सिर माल व्याल, बिष भूति बिभूषन।
नाम सुद्ध, अविरुद्ध, अमर, अनवद्य, अदूषन।
बिकराल भूत-बैताल-प्रिय, भीम नाम भवभय-दमन।
सब बिधि समर्थ, महिमा अकथ 'तुलसिदास' संसयसमन॥१५१॥

शब्दार्थ—अङ्गना= स्त्री। जोगीस= योगियों के स्वामी। जोंगपति= योग के पति। वषम असन= भॉग, धतूरा भोजन करनेवाले। बिस्वेस= (स० विश्वेश) संसार के स्वामी। विश्ववगति = संसार भर की शरण। व्याल= सर्प। भूति= विभूति। अविरुद्ध= जिसका कोई प्रतिद्वन्द्री न हो। अमर= कभी न मरनेवाले। अनवद्य= निंंदा के अयोग्य अर्थात् स्तुत्य, प्रशसनीय। अदूषन= दोपरहित। भीम= भयंकर। भवभय= जन्म- मरणादि के भय। महिमा अकथ= जिसकी महिमा का वर्णन नही किया जा सकता। संसय-समन= (सशय समन) सन्देह को हटानेवाले।

भावार्थ—शिवजी के बॉए अङ्ग में स्त्री विराजमान है, पर नाम है योगियों के स्वामी और योग के पति। भॉग, धतूरा आदि का भोजन करते हैं और नग्न रहते हैं, नाम है संसार के स्वामी और संसार को शरण देनेवाले। हाथ में खप्पर है, सिग में सॉपो की माला लिपटाए हुए हैं, विष (गले मे कालक्ट बिष की नीलिमा) और भस्म ही इनके अभुषण हैं, तिस पर भी नाम है शुद्ध। जिनका प्रतिद्वन्द्वी कोई नहीं हैं, जो अमर हैं स्तुति करने योग्य हैं, दोष-रहित हैं, विकराल भूत वैताल-प्रिय ऐसा भयकर नाम है, तब भी सासारिक भयों को दूर करते हैं। जो सब प्रकार से समर्थ हैं और जिनकी महिमा कही नही जा सकती, वही शकर तुलसीदास के सब्र सन्देहों को मिटनेवाले हैं।

मूल—भूतनाथ भयहरन, भीम भय-भवन भूमिघर।
भांतुमंत, भगवंत, भूति भूषन भुजग बर।