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उत्तरकांंड

पायन= (स० प्रयाण) यात्रा को जाते समय। छेमकरी= (स० क्षेमकरी) (१) एक पक्षी का नाम, (२) कुशल करनेवाली।

प्रकरण—किसी यात्रा के समय तुलसीदासजी ने क्षेमकरी पक्षी को देखा और उसकी प्रशंसा में यह छद कहा;

भावार्थ—इस क्षेमकर ने अपनी चोच के रग से कुकुम को भी जीत लिया है। इसका मुखचद्र इतना सुन्दर है कि आकाशीय चद्रमा से समता करता हैं। इसके वचन बोलते ही मानो धन-वैभव टपकता है, देखते ही यह पक्षी सोच और दुःख को दूर कर देता है। क्या यह चिड़िया के वेष में पार्वती है अथवा गंगा है? अथवा आनद से परिपूर्ण किसी अन्य सुन्दर देवी की मूर्ति? प्रस्थान करते समय प्रेम-सहित क्षेमकरी के दर्शन पाना सब चिंताओं को मिटाकर मुगलकारी होंता है।

अलंकार— ‘मुखचद सो चद सो होंड़ पर है’ में ‘ललितोपमा’। तृतीयपाद मे ‘संदेहालंकार’।

मूल—
(कवित्त)


मंगल की रासि, परमारथ की खानि, जानि,
बिरचि बमाई बिधि, केसव बसाई है।
प्रलय हु काल राखी सूलपानि सूल पर,
मीचुवस नीच सोऊ चहत खसाई है।
छॉड़ि छितिपाल जो परीछित भए कृपालु,
भलो कियो खल को, निकाई सो नसाई है।
पाहि हनुमान! करुनानिधान राम पाहि!
कासी कामधेनु कलि कुहत कसाई है॥१८१३॥

शब्दार्थ—रासि=(स० राशि) ढेर। खानि= उत्पत्ति भूमि। बिरचि बनाई= अच्छी तरह रचकर बनाई। केसव= विष्णु। बसाई है= पलान किया है। सूलपानि= त्रिशूल हाथ में धारण करनेवाले, शिवजी। सूल= त्रिशूल। चहत खसाई= नाश झरना चाहता है। छितिपाल= राजा। परीछित= अर्जुन का पौत्र परीक्षित। निकाई= भलाई। कुहन हैं= मारता हैं।

भावार्थ— मंगल-पूर्ण और मोक्ष देनेवाली जानकार व ने विशेष रीति