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बालकाण्ड

शब्दार्थ―छोना, छिति = पृथ्वी। बाले = बुलाये आये हैं। बरकाज = स्वयंवर। छोनी = छावनी, डेरा।

[ ९ ]

सीय के स्वयंवर समाज जहाँ राजनि को,
राजनि के राजा महाराजा जानै नाम को?।
पवन, पुरदर, कृसानु, भानु, धनद से,
गुन के निधान रूपधाम सेाम काम को?॥
वान बलवान जातुधानप सरीखे सूर
जिन्हके गुमान सदा सालिम संग्राम को।
तहाँ दसरस्थ के समर्थ नाथ तुलसी के
चपरि चढ़ायो चाप चन्द्रमा ललाम को॥

अर्थ―सीताजी के स्वयंवर में जहाँ राजाओं का समाज था, और राजाओं के राजा और महाराजा अनेक विद्यमान थे, जिनके नाम कौन जानता है (अर्थात् इतने राजा और महाराजा थे जिनके नाम तक कोई नहीं जानता था)। (वह राजा लोग) पवन, इन्द्र, अग्नि, सूर्य, कुवेर और चन्द्र से गुण के समुद्र और रूप के घर कामदेव की सी शोभावाले थे। वली बाण और रावण सरीखे शुर वहाँ थे, जिन्हें सदा रण का सालिम (पृरा) गुमान (घमण्ड) था। वहाँ दशरथ के समर्थ (लायक) बेटे तुलसीदास के नाथ (रामचन्द्र) ने चपरि (बढ़कर) चन्द्रमा-ललाम (महादेव) के चाप (धनुष) को चढ़ा दिया।

शब्दार्थ―चंद्रमा-ललाम = जिनके माथे पर चंद्रमा है अर्थात् महादेव।

[ १० ]

मयनमहन पुर-दहन गहन जानि
आनि कै सबै को सारु धनुष गढ़ायो है।
जनक सदसि* जेते भले भले भूमिपाल
किये बलहीन, बल आफ्नो बढ़ायो है॥


*पाठांतर-सदृश।