उसका आतनाद सुनकर भगवान् गरुड़ को छोड़कर गजेंद्र की सहायता के निमित्त आए। भगवान् ने गजेंद्र की सूँँड़ पकड़ कर ग्राह सहित जल से बाहर खीचकर चक्र से ग्रह का मुख फाड़कर उसे छुडाया और वे गजेंद्र को अपना पार्षद बनाकर अपने साथ ले गए।
कान्यकुब्ज देश मे अजामिल नाम का एक ब्राह्मण था। उसने अपनी विवाहिता पत्नी को त्याग कर दासी से प्रीति की थी। वह जुआ, चोरी, ठगी आदि अनेक प्रकार के निदित कर्म करता था। एक दिन जब वह बाहर गया था उसके घर पर कुछ साधु आए। उसकी गर्भवती स्त्री ने साधुओं का बड़ा आदर-सत्कार किया। जाते समय साधुओ ने उसे आशीर्वाद दिया कि तेरे पुत्र होगा। तू उसका नाम 'नारायण' रखियो। अजामिल अपने दस पुत्रों में सबसे छोटे 'नारायण' को सबसे ज्यादा प्यार करता था। बिना छोटे पुत्र के उसे चैन नही पड़ता था। अत में मरते समय जब उसे यमराज के दूत भय दिखाने लगे, तब उसने अपने प्रिय पत्र नारायण' को पुकारा नाम लेते ही भगवान् के दूतो ने आकर उसे यमदूतों के पजे से छुड़ाया। भगवान् ने उसे सुन्दर गति दी।
जब प्रह्लाद अपनी माता कयाधु के गर्भ में थे, उस समय एक दिन नारदजी ने आकर उनकी माँ को ज्ञानोपदेश किया। मॉ को तो ज्ञान नहीं हुआ, पर गर्भ के बालक को ज्ञान हो गया ।प्रह्लाद रामजी के बड़े भारी भक्त हुए; इनके लिए भगवान् को नृसिंह अवतार धारण करना पड़ा जिसकी कथा लोक-प्रसिद्ध है
यह जाति की मीलनी थी, मतग ऋषि की सेवा किया करती थी; जब ऋषि परमधाम को जाने लगे तो इसने भी ले जाने का हठ किया। परंतु ऋषि ने कहा कि तु अभी यहीं रह। तुझे त्रेता में भगवान् के दर्शन मिलेगे। गृध्र को परमधाम देकर भगवान् शवरी के आश्रम मे गए, भगवान् ने उसके बेर खाए और उसे नवधा भक्ति का उपदेश दिया। शबरी रामजी को सुग्रीव