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बालकाण्ड

शब्दार्थ—व्योम= आकाश। रूर= सुंदर। राचहीं= रचना, बनाना। भावतो= मन का चाहा।

[१५]


भले भूप कहत भले भदेस भूपनि सों,
“लोक लखि बोलिए पुनीति रीति मारखी”।
जगदम्बा जानकी, जगत पितु रामभद्र,
जानि, जिय जोवो, जौन लागे मुँँह कारखी॥
देखे हैं अनेक व्याह, सुने हैं पुरान वेद,
वृझे हैं सुजान साधु नर नारि पारखी।
ऐसे सम समधी समाज ना विराजमान,
राम से न वर, दुलही न सीय सारखी॥

अर्थ—अच्छे राजा लोग भोंड़े गजाओं से वचन कहते थे कि लोक को देखकर प्रेम की पवित्र रीति को कहिए। हृदय से श्रीजानकी को जगदम्बा और श्रीराम को जगत्-पिता जान कर देखा जिससे मुँँह में कालौंच न लगे। बहुत से ब्याह देखे हैं, पुराण वेदों में सुने हैं और पण्डितगण, साधु मनुष्य, स्त्री और पारिषदों से बूझे हैं (जाने हैं)। परन्तु ऐसे समान समधी किसी समाज में विद्यमान नहीं हुए; न राम सा दुलहा न जानकी सी दुलहिन, देखी, न सुनी।

[१६]


बानी, विधि, गौरी, हर, सेस हूँ, गनेस कही,
सही भरी लोमस, भुसुण्डि बहु बारिखो।
चारि दस भुवन निहारि नर नारि सब,
नारद को परदा न नारद सो पारिखो॥
तिन कही जग मैं जगमगाति जारी एक,
दूजो को कहैया औ सुनैया चष चारिखो।
रमा, रमारमन, सुजान हनुमान कही,
“सीय सी न तीय, न पुरुष राम सारिखो”॥