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कवितावली

अर्थ―सरस्वती, ब्रह्मा, गौरी, महादेव, शेष और गणेश ने कहा और लोमश व बहुत पुराने भुशुण्डि ने भी उसकी सही की; चौदह भुवन के पुरुषों और स्त्रियों को देखकर नारद―जिनसे किसी का परदा नहीं है और न जिनसा पारिषद (परखैया, जाननेवाला) है उन्होंने भी कहा कि संसार में एक ही जोड़ी जगमगा रही है। दूसरी बात का कहनेवाला व सुननेवाला और दूसरा कौन हुआ है? रमा, व रमारमण (विष्णु), सुजान (जाननेवाले) हनुमान ने यही कहा कि सीताजी सी स्त्री और रामचन्द्र सा पुरुष नहीं है।

शब्दार्थ―सही भरी = उस पर सही की अर्थात् उसका समर्थन किया। चख चारिखो = चारि आँखवाले कौन हैं अर्थात् कोई नहीं है।

सवैया

[ १७ ]

दूलह श्री रघुनाथ बने, दुलही सिय सुंदर मंदिर माहीं।
गावति गीत सबै मिलि सुंदरि, वेद जुवा जुरि विप्र पढ़ाहीं॥
राम को रूप निहारति जानकी कंकन के नग की परछाहीं।
यातेँ सबै सुधि भूलि गई, कर टेकि रही पल टारति नाहीं॥

अर्थ―श्री रघुनाथजी दूलह और सुन्दर सीताजी घर में दुलहिन बनीं। सब सुन्दर स्त्रियाँ मिलकर गीत गाती हैं और युवा (जवान) मिलकर वेद-पाठ करते हैं। कङ्कण के नग में परछाहीं से सीताजी रामचन्द्रजी का रूप देखती हैं। इससे सब सुधि भूल गई हाथ टेककर रह गई और पल भी नहीं हिलाती हैं।

शब्दार्थ―जुवा = युवा, अथवा जुआ, विवाह में वर-दुलहिन को जुआ खिलाने की रीति अब भी अनेक जातियों में प्रचलित है।

घनाक्षरी

[ १८ ]

भूप मंडली प्रचंड चंडीस-कोदण्ड खंड्यौ,
चंड बाहु-दंड जाको ताही सों कहतु हौं।
कठिन कुठार धार धारिबे की धीरताहि,
वीरता विदित ताकी देखिए चहतु हौं॥