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कवितावली


परन्तु महादेवजी का धनुष जो टूट गया है सो इससे न जुड़ेगा। क्या आपकी शराकत धनुष में रही— अर्थात् क्या आपका सलमें साझा था अथवा ('कहाँ' पाठ होने से) आपको सरीकत (बराबरी) धनुष कैसे कर सकता है, धनुष का टेढ़ापन तो टूटने से निकल गया किन्तु आपका टेढ़ापन अभी बाकी है।

शब्दार्थ— अकनि= सुनकर। सरीकता= बराबरी, साझा।

सवैया
[२०]

गर्भ के अर्भक काटन कों पटु धार कुठार कराल है जाको।
सोई हौं बूझत राजसभा “धनु को दल्यौ,” हौं दलिहौं बल ताको॥
लघु आनन उत्तर देत बड़ो, लरिहै, मरिहै, करिहै कछु साको।
गोरो, गरूर गुमान भरो, कहौ कौसिक छोटो सो ढोटो है काको॥

अर्थ—गर्भ के बच्चों को मारने के लिये जिसका कराल फरसा तेज़ घारवाला है वही, मैं राजसभा में पूछता हूँ कि धनुष किसने तोड़ा है। मैं उसके बल को तोड़ूँगा। छोटे मुँह बड़ा जवाब देता है, लड़ैगा, मरैगा और कुछ साका (कहानी) छोड़ैगा। हे कौशिक! कहो, यह गोरा, गरूर और घमण्ड से भरा हुआ छोटा सा लड़का किसका है?

शब्दार्थअर्भक= बञ्चा। साको= वह बातें जो वीर पुरुषों की प्रशंसा में कही जाती हैं, प्रशंसा।

घनाक्षरी
[२१]


मख राखिबे के काज राजा मेरे संग दये,
जीते जातुधान, जे जितैया विबुधेस के।
गौतम की तीय तारी, मेटे अघभूरि भारी,
लोचन अतिथि* भये जनक जनेस के॥
चंड-बाहु-दंड बल चंडीस-कोदंड खंड्या,
ब्याही जानकी, जीते नरेस देस देस के।


*पाठान्तर-अथित।