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बालकाण्ड

साँवरे गोरे सरीर, धीर महा वीर दोऊ,
नाम राम लपन, कुमार कोसलेस के॥

अर्थ―मेरे साथ यज्ञ की रक्षा के लिये राजा ने इन्हें भेजा है। इन्होंने इन्द्र के जीतनेवाले राक्षसो को मार डाला, अहिल्या (गौतम की स्त्री) को तार दिया और उसके भारी सब पापों को नाश कर दिया, राजा जनक के नैन अतिथि हुए अर्थात् उनके पास गये अथवा राजा जनक के नैन अथित हो गये (स्थिर हो गए, देखते ही रह गये), इन्होंने अपने प्रचण्ड बाहुवल से शिवजी का धनुष तोड़ा और देश देश के राजाओं को जीतकर सीताजी को व्याहा। साँवले और गोरे शरीरवाले, धीर, बड़े वीर राम लक्ष्मण दोनों दशरथ के लड़के हैं।

शब्दार्थ―अघ = पाप। भूरि = ढेर। मख = यज्ञ।

सवैया

[ २२ ]

काल कराल नृपालन के धनुभंग सुने फरसा लिये धाये।
लक्खन-राम विलोकि सप्रेम, महारिसि ते फिरि आँखि देखाये॥
धीर सिरोमनि बीर बड़े, विनयी, विजयी, रघुनाथ साहाये।
लायक हे भृगुनायक, सो धनुसायक सौंपि सुभाय सिधाये॥

अर्थ―राजाओं के भयानक काल, परशुरामजी, धनुष टूटा सुनकर फरसा लेकर दौड़ आये। राम लक्ष्मण को उन्होंने प्रेम से देखा और फिर क्रोधित होकर आँखें दिखाई। फिर धीरों में श्रेष्ठ बड़े वीर विनय करनेवाले और सबको जीतनेवाले रामचन्द्रजी से प्रसन्न हुए। परशुरामजी जो बड़े लायक थे सो धनुष-वाण रामचंद्रजी को देकर सहज ही में चल दिये।


इति वालकाण्ड


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