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अयोध्याकाण्ड

तुलसीदास कहते हैं कि गाँवों की स्त्रियाँ सुनकर आश्चर्ययुक्त हुई, उनके शरीर पुलकायमान हो गये और आँखों से पानी बह निकला। दोनों राजकुमार सब तरह सुन्दर, मन को हरनेवाले और उपमा-रहित हैं।

शब्दार्थ―बिथकों = थकित, आश्चर्ययुक्त।

[ ४१ ]

साँवरे गोरे सलोने सुभाय, मनोहरता जित मैन लियो है।
बान* कमान निषंग कसे, सिर सोहैं जटा, मुनि बेष किया है॥
संग लिये बिधु-बैनी† वधू, रति को जेहि रंचक रूप दिया है।
पाँयन तो पनहां न, पयादेहि क्यों चलिहैं? सकुचात हियो है॥

अर्थ―साँवले और गोरे कुँवर स्वाभाविक ही सलोने (सुन्दर) हैं मानों मनोहरता (खूबसूरती) कामदेव से छीन ली (जीत ली) है, अथवा मनोहरता में कामदेव को जीत लिया है। धनुष बाण और तरकस लिये हैं। (अथवा बाल पाठ से) बालक हैं और कमान और तरकस लिये हैं। शिर पर जटा शोभायमान हैं और मुनियों का सा भेष बनाये हुए हैं। साथ में चन्द्रमा के से मुँहवाली स्त्री है जिसने अपने रूप में से रत्तो भर रति को भी दे दिया है। पैरों में तो पनहीं भी नहीं है, ये पैदल क्योंकर चलेंगे? यही सङ्कोच मेरे जी में है।

[ ४२ ]

रानो मैं जानी अजानी महा, पवि पाहन हूँ ते कठोर हियो है।
राजहु काज अकाजन जान्यो, कह्यो तिय को जिन कान किया है॥
ऐसी मनोहर मूरति ये, बिछुरे कैसे प्रीतम लोग जियो है?
आँखिन में सखि! राखिबे जोग, इन्हैं किमि के बनबास दियो है?

अर्थ―मेरी समझ में रानी (कैकेयी) महा बेवकूफ़ तथा वज्र और पत्थर से भी कठोर हृदयवाली है। राजा ने भी अपना नफ़ा नुक़सान नहीं जाना जिन्होंने स्त्री का कहना मान लिया। ऐसी सुन्दर मूरत के चले आने पर इनके



*पाठांतर―बाल।
†बैनी = बदनी, मुँहवाली, अथवा अमृत के से बोलवाली।