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सुन्दरकाण्ड
[५४]


माली मेघमाल, बनपाल बिकराल भट,
नीके सब काल सींचे सुधासार नीर को*।
मेघनाद ते दुलारो प्राण ते पियारो बाग,
अति अनुराग जिय यातुधान धीर को*॥
तुलसी सो जानि सुनि, सीय को दरस पाइ,
पैठो बाटिका बजाइ बल रघुबीर को*।
विद्यमान देखत दसानन को कानन सो,
तहस-नहस कियो साहसी समीर को*॥

अर्थ— उस बाग के माली (पानी देनेवाले) मेघमाल (बादल की माला थीं) और रक्षक बड़े बड़े विकराल योधा थे। बाग सब काल में अमृत के से जल से सींचा जाता था। रावण को वह बाग मेघनाद (पुत्र) और अपने प्राणों से भी अधिक प्यारा था। उस पर रावण की बड़ी प्रीति थी। हे तुलसी! इस बात को सुनकर और जानकर भी सीता का दर्शन करने के पश्चात् रामचन्द्रजी के बल पर (हनुमान) उस बाग में ताल ठोककर (डङ्का बजाकर) घुस गया (और) रावण की मौजूदगी में उसके देखते वन को साहसी वायुपुत्र ने तहस-नहस (नष्ट) कर डाला।

[५५]


बसन बटोरि बोरि बोरि तेल तमीचर,
खारि खोरि धाइ आइ बाँधत लँगूर हैं।
तैसो कपि कौतुकी डरात ढीलो गात कै के,
लात के अघात सहै जी में कहै 'कूर हैं'॥
बाल किलकारी कै कै तारी दै दै गारी देत,
पाछे लागे बाजत निसान ढोल तूर हैं।
'बालधी बढ़न लागी, ठौर ठौर दीन्हीं आगि,
बिंध की दवारि कैंधों कोटि सत सूर हैं॥


  • पाठान्तर—के।