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कवितावली

अर्थ—जिस-जिस जगह हनुमान् जाके गरजते हैं वहीं-वहीं मकान में आग लग जाती है और लोग चिल्लाते हैं अथवा जगह-जगह लोग आग लगी देखकर रोते और चिल्लाते हैं कि भागो-भागो, आग लगी है, घर जल रहा है। बाप, माँ, भाई, बहन, स्त्री, भाभी, बेटा छोटा लड़का कहाँ है। अरे अभागो! मूर्ख! भागो! हाथी खोल लाओ, घोड़ा निकालो, बैल भैंस खोलो, बकरी लाओ और जो सोता हो उसे जगा दो। अरे! जागा-जागो। हे तुलसी! घबराई हुई मंदोदरी यह (कौतुक) देखकर कहती थी कि पिय (रावण) से पहिले ही बार-बार कहा था कि बन्दर से मत बोलो।

शब्दार्थ—बुबुक= भभक। बुबुकारी= चिल्लाना। निकेत= घर। भामिनी= स्त्री। छोहरा= लड़का। ढोटा= बेटा। महिष= भैंस बृषभ= बैल।

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देखि ज्वाल*जाल, हाहाकार दसकंध सुनि,
कह्यो ‘धरो धीर’ धाये बीर बलवान हैं।
लिये सूल, सेल, पास, परिघ, प्रचंड दंड,
भाजन समीर†, धीर धरे धनुबान हैं॥
तुलसी समिध सौंज‡ लंक-जज्ञकुंड लखि,
जातुधान पुंगीफल, जब, तिल, धान हैं।
स्त्रुवा सो लंगूल बलमूल प्रतिकूल हवि,
स्वाहा महा हाँकि हाँकि हुने हनुमान हैं॥

अर्थ—आग की लौ को देखकर और हाहाकार को सुनकर रावण ने कहा कि बन्दर को पकड़ो अथवा धैर्य धरो। (यह सुनकर) बलवान् शूर-वीर चले। वायु के से धीर राक्षस शूल, शेल (बरछी), पाश (फाँसी), परिघ, बड़े लट्ट, और धनुष-बाण लिये हैं। हे तुलसी! यह लङ्का रूपो यज्ञकुण्ड, सामग्री रूपी समिधा और राक्षस रूपी सुपारी, जौ, तिल और धान को देखकर, पूँछ रूपी स्त्रुवा से बली वैरी रूपी हवि को हाँक-रूपी स्वाहा कह-कहकर हनुमान ने राक्षसों को आग में हवन कर दिया।



*पाठांतर—ज्वाला।
†पाठांतर—सनीर।
‡पाठांतर—सौंजी।