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सुन्दरकाण्ड

भागी जाती हैं। वा छूट गये, मणि और भूषण की भी कोई सँभाल नहीं करता है। मुँह सूखे हैं और कहती हैं कि कोई क्योकर रक्षा करेगा। हे तुलसी! मन्दोदरी हाथ मींजती थी और माथा धुनकर कहती थी कि मैंने कल (पिछले दिनों) कितना कहा था उसे उस समय किसी ने न सुना। बेचारा विभीषण बार-बार पुकारकर कहता रहा कि यह बन्दर बड़ी बला है और बहुत से घरों का नाश करेगा।

शब्दार्थ―अकुलानी = धबड़ाई हुई। परानी = भागी। बिसारैं = छोड़ैं। मंदावै = मंदोदरी, रावण की स्त्री। वापुरो = बेचारा। धालि है = नाश करेगा।

[ ६३ ]

कानन उजास्यो तो उजारयो न विगारेउ कछु,
बानर विचारो बाँधि आन्यो हठि हार सों।
निपट निडर देखि काहू ना लख्यो बिसेषि,
दीन्हों न छुड़ाइ कहि कुल के कुठार सों॥
छोटे औ बड़ेरे मेरे पूतऊ अनेरे सब,
साँपनि से खेलैं, मेलैं गरे छुराधार सों।
तुलसी मँदोवै रोइ रोइ के बिगोवै आपु,
“बार बार कह्यो मैं पुकारि दाढ़ीजार सों॥

अर्थ―वन को उजाड़ा था तो उजाड़ा ही था, कुछ ऐसा नहीं बिगाड़ा था कि बेचारे बन्दर को मेघनाद हार से जबरदस्ती बाँध लाये। किसी ने ऐसा बड़ा बेडर देखकर भी ख़ासकर उसे न ताका और उस कुल के कुठार (नाशकर्ता, रावण) से कहकर छुड़ान दिया। मेरे लड़के भी छोटे-बड़े सब अनाड़ी हैं जो साँप से खेलते हैं और छुरा की धार को गले में लगाते हैं। हे तुलसी! मन्दोदरी रो-रोकर आप आँसू बहाती है कि मैंने दाढ़ीजार से पुकार-पुकार कहा था (लेकिन उसने न माना)।

शब्दार्थ―हठहार = हठ जिससे हार गया (मेघमाद)। अथवा हठि = हठ करके+हार = जंगल। अनेरे = अनाड़ी।

[ ६४ ]

रानी अकुलानी सब डाढ़त परानी जाहिं,
सके ना विलोकि वेष केसरीकुमार को।