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सुन्दरकाण्ड

तुलसी बिलोकि महा साहस प्रसन्न भई,
देवी सीय सारषी, दियो है वरदान सो॥
बाटिका उजारि अच्छ-धारि मारि, जारि गढ़,
भानु-कुल-भानु को प्रताप-भानु भानु सो।
करत विसोक लोककोकनद, कोक-कपि,
कहैं जामवंत आयो आयो हनुमान सो॥

अर्थ―साहसी हनुमान समुद्र पार करके लङ्का को सिद्ध पीठ पाकर रात को मसान जगाने लगा। हे तुलसी! उनका महा साहस देखकर सीताजी सी देवी प्रसन्न हुई अथवा देवी सी सीता प्रसन्न हुई और उनको वरदान दिया। बाग को उजाड़कर, अक्ष और सेना को संहार कर, गढ़ (लङ्का) को जलाकर रामचन्द्रजी का प्रताप रूपी भानु, सूर्य की तरह, सकल जगतरूपी कमल और चक्रवाक को प्रसन्न करता हुआ कपि (हनुमान्) आया। जामवन्त प्रादि कपि यह देखकर कहने लगे कि हनुमान से आ रहे हैं।

शब्दार्थ―समीर-सुनु = वायुपुत्र, हनुमान्। नीर-निधि = समुद्र। निशि = रात। जागो है = जगाया है। सारषी = सरीखी = सी। धारि = सेना। भानु-कुल-भानु = सूर्य्यकुल के भानु, राम- चंद्र। कोकनद = कमल।

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गगन निहारि, किलकारी भारी सुनि,
हनुमान पहिचानि भये सानंद सचेत हैं।
बूड़त जहाज बच्यो पथिक समाज मानो,
आजु जाये जानि सब अंकमाल देत हैं॥
"जै जै जानकीस जै जै लखन कपीस" कहि
कूदैं कपि कौतुकी, नचल रेत रेत हैं।
अंगद मयंद नल नील बलसील महा,
बालधी फिराबैं मुख नाना गति लेत हैं॥

अर्थ―आसमान को देखकर और भारी किलकारी सुनकर हनुमान् को पहचानकर (सब कपि) सचेत और आनन्दित हो गये। मानो डूबते हुए जहाज का समाज