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कवितावली


बच गया, आज फिर से उत्पन्न हुए, यह जानकर सब हनुमान के गले में हाथ डाल मिलने लगे। “जय रामचन्द्र, जय लक्ष्मण, जय कपीश” (ऐसा) कहकर खिलाड़ी बंदर कूदने लगे और रेत-रेत में (अर्थात् रेत में प्रत्येक जगह) नाचने लगे। अङ्गद, मयन्द, नल, नील यह सब बलवान कपि बड़ी बड़ी पूँछ फिराते थे और भाँति भाँति के मुख बनाते थे।

[८२]


आयों हनुमान प्रान-हेतु, अंकमाल देत,
लेत पगधूरि एक चूमत लँगूल हैं।
एक बूझै बार बार सीय-समाचार कहे,
पवनकुमार भो विगत स्त्रम सूल हैं॥
एक भूखे जानि आगे आने कंद मूल फल,
एक पूजै बाहुबल तोरि मूल फूल हैं।
एक कहैं ‘तुलसी’! सकल सिधि ताके, जाके
कृपा-पाथ नाथ सीता-नाथ सानुकूल हैं’॥

अर्थ—प्राणों के आधार हनुमान् लौट आये, कोई उनको गले से लगाते हैं, कोई उनके पैर की धूल माथे पर लेते हैं, कोई उनकी पूँछ को चूमते हैं। (कोई) बार-बार सीता के समाचार पूछते हैं, हनुमान भी समाचार कहकर श्रम-रहित हुए। अथवा (कहे के स्थान पर कहौ और कहे के पश्चात् जो, है वह समाचार के बाद होने से) कोई पूछता है कि हे हनुमान कहो थकावट दूर हुई? कोई भूखा जानकर कन्दमूल फल सामने रखता है। कोई मूल (कंद) और फूल तोड़ लाकर उनके बाहुबल की पूजा करता है अथवा (मूल तोरि पाठ होने से) कोई फूल तोड़ लाकर बल की मूल बाहुओं की पूजा करता है। कोई कहता है कि हे तुलसी! उसको सब सिद्ध है जिस पर कृपासिन्धु रामचन्द्र प्रसन्न हैं।

[८३]


सीय को सनेहसील, कथा तथा लंक की*,
चले कहत चाय सों, सिरानो† पथ‡ छन में।



* पाठान्तर—लङ्क कर चले जात।
†पाठान्तर—सिरानी।
‡पाठान्तर—पंध।