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सुन्दरकाण्ड़


कह्यो जुवराज बोलि वानर समाज आजु,
खाहु फल" सुनि पेलि पैठे मधुबन में॥
मारे बागवान, ते पुकारत दिवान गे,
'उजारे बाग अंगद' दिखाये घाय तन में।
कहैं कपिराज 'करि काज* आये कीस,
तुलसीस† की सपथ महामोद मेरे मन में'॥<

अर्थ— सीताजी का स्नेह और शोल व लङ्का की कथा कहते बड़े चाव से रास्ते में चले जाते हैं, रास्ता क्षण भर में (न कुछ देर में) कट गया। युवराज अङ्गद ने सब बन्दरों को बुलाकर कहा कि आज "फल खाओ"। यह सुनकर सब मधुवन में घुस गये। बागवानों को मारा जो रोते हुए राज्य में गये और यह चिल्लाकर कहने लगे कि अङ्गद वगैरह ने बाग उजाड़ दिया, और बदन की चोट दिखाने लगे। सुग्रीव ने कहा कि बन्दर कार्य्य कर आये, महाराज रामचंद्र की कसम मेरे मन में बड़ी ख़ुशी है।

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नगर कुबेर को सुमेरु की बराबरी,
विरंचि बुद्धि को बिलास लंक निरमान भो।
ईसहि चढ़ाय सीस बीस बाहु बीर तहाँ,
रावन सो राजा रज‡ तेज को निधान भो॥
तुलसी त्रिलोक की समृद्धि सौज संपदा,
सकेलि चाकि राखी रासि, जाँगर§ जहान भो।
तीसरे उपास बनवास सिंधु पास सो,
समाज महराज जू को एक दिन दान भो॥



* पाठान्तर— करि आये कीश काज।
†पाठान्तर— महाराज।
‡पाठान्तर— राज।
§पाठान्तर-जागर— उजागर, प्रकाश, जाहिर, जाँगर, जँबरा, दाना निकाल लेने पर जो डण्ठल बचता है।