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कवितावली

अर्थ―कुबेर की नगरी और सुमेरु के समान (अर्थात् सोने की) लङ्का जो ब्रह्माजी की बुद्धि का विलासस्थान है अर्थात् जहाँ रहकर ब्रह्माजी अपनी बुद्धि की विलक्षणता दिखलाते हैं अथवा ब्रह्मा की जितनी बुद्धि थी वह सब खर्च करके बनी है। जिसने महादेवजी को शिर चढ़ाये हैं ऐसा बीस बाहुओंवाला वीर रावण तेज का निधान जिस नगर का राजा है, हे तुलसी! जहाँ तीनों लोक की सामग्री और सम्पदा समेटकर इकट्ठी कर रक्खी है, जिससे संसार सूना हो गया अथवा जो सब दुनिया में ज़ाहिर हैं, वह नगर और उसका सब समाज अर्थात् सब समृद्धि सहित लङ्का को तीसरे उपास अर्थात् तीन दिन भूखे रहकर वन में सिन्धु के किनारे महाराजा रामचन्द्रजी ने एक ही दिन में अथवा एक दिन दान में दे दिया अर्थात् विभीषण को दे डाला।


इति सुन्दरकाण्ड


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*पाठान्तर―राज।

†पाठान्तर―जागर = उजागर प्रगट, ज़ाहिर। जाँगर = जंगरा, दाना निकल जाने पर जो डण्ठल वचता है।