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लंकाकाण्ड
घनाक्षरी
[८५]


बड़े बिकराल भालु, बानर बिसाल बड़े,
तुलसी बड़े पहार लै पयोधि तोपि हैं।
प्रबल प्रचंड वरिवंड बाहुदंड खंड,
मंडि मेदनी को मंडलीक-लीक लोपि हैं।
लंकदाहु देखे न उछाहु रह्यो काहुन† को,
कहें सब सचिव पुकारि पाँव रोपि हैं।
“बाचि है न पाछे त्रिपुरारि हु मुरारिहू के,
को है रनरारि को जोँ कोसलेस कोपि हैं॥”

अर्थ—हे तुलसी! बड़े कराल और बड़े शरीरवाले रीछ और बन्दर बड़े-बड़े पहाड़ लेकर समुद्र को भर देंगे। बड़े बलवान् और प्रतापशील और कठिन भुजाओं-वाले, पृथ्वी को भूषित करके (भर के) बड़ों-बड़ों का अथवा मण्डलीक रावण का नाम मिटा देंगे। लङ्का का दाह देखे पीछे किसी के मन में उत्साह नहीं रह गया। सब मन्त्री पुकार-पुकार कर कहने लगे कि जब रामचन्द्र पैर रक्खेंगे और क्रोध करेंगे, अथवा मन्त्रियों ने पैर रोपकर कहा कि जब रामचन्द्रजी क्रोध करेंगे तो लड़ाई में महादेव, विष्णु की आड़ लेने पर भी हम लोग न बचेंगे।

[८६]


त्रिजटा कहत बार बार तुलसीस्वरी सों‡,
“राघौ बान एक ही समुद्र सातौ सोषिहैं।



*पाठान्तर—बलबंड।
†पाठान्तर—काहू।
‡पाठान्तर—तुलसी खरी सो।