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कवितावली

सकुल सँघारि जातुधान धारि, जंबुकादि
जोगिनीजमाति कालिका-कलाप तोषिहैं॥
राज दै निवाजिहैं बजाइ कै बिभीषनै,
बजैंगे व्योम बाजने बिबुध प्रेम पोषिहैं।
कौन दसकंध, कौन मेघनाद बापुरो,
को कुंभकर्न कीट जब राम रन रोषिहैं”॥

'अर्थ―"त्रिजटा बार-बार सीताजी से कहती है कि रामचन्द्रजी एक ही वाण से सातो समुद्रों को सोखेंगे और सकुटुम्ब राक्षसों की सेना को मारकर जम्बुक वगैरह, योगिनियों की जमाति (समूह) कालिका आदि को सन्तुष्ट करेंगे अर्थात् उनको इतना भोजन देंगे कि वह सन्तुष्ट हो जावेंगे और नाद करने लगेंगे। उङ्के की चोट राज देकर विभीषण की सेवा का फल देंगे और आकाश में बाजे बजेंगे और देवगण को प्रेम से पालेंगे। क्या रावण, कहाँ का मेघनाद बेचारा और कहाँ का कुम्भकर्ण, ये सब कीड़े के समान नष्ट होंगे जब रामचन्द्र रण में क्रुद्ध होंगे।

शब्दार्थ―व्योम = आकाश। बापुरो = बेचारा। बिबुध = देवता।

[ ८७ ]

बिनय सनेह सों कहति सीय त्रिजटा सों,
“पाये कछु समाचार आरजसुवन के?”
“पाये जू! बँधायो* सेतु, उतरे† कटक कुलि,‡
आये देखि देखि दूत दारुन दुवन के॥
बदनमलीन बलहीन दीन देखि मानौ,
मिटे घटे तमीचर तिमिर भुवन के।
लोकपतिसोककोक, मूँदे कपिकोकनद,
दंड द्वै रहे हैं रघु-आदित उवन के॥



*पाठान्तर―बँधाये।
†पाठान्तर―आये।
‡पाठान्तर―भानु-कुल-केतु।