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लङ्काकाण्ड

भूलिहैं दस दिसा, सेस* पुनि डोलिहैं,
कोपि रधुनाथ जब वान तानी॥
बालि हू गर्व जिव माहिं ऐसे कियो,
मारि दहपट किया जम की घानी†।"
कहत मन्दोदरी सुनहि, रावन! मतो,
"बेगि लै देहि वैदेहि रानी॥"

अर्थ―उनकी सेना के वानरों को कौन गिन सकता है, वह तो अर्बुद (बड़ी संख्यावाले, असंख्य) हैं और समझ लो कि हनुमान से महावली वीर हैं। दसों दिसा भूल जायँगी, (अर्थात् तू ज्ञानशून्य हो जायगा) और शेषजी हिलने लगेंगे जब रामचन्द्र क्रोध करके बान तानेंगे। बालि ने अपने मन में ऐसा ही गरूर किया था (कि मेरा कोई क्या कर सकता है) उसे मार चौपट कर यमराज की राजधानी को भेज दिया अथवा कोल्हू में पेर दिया। मंदोदरी ने रावण से कहा कि यह मता सुन कि जल्दी सीता को लौटा दे।

[ १०५ ]

“गहन उज्जारि पुर जारि सुत मारि तब,
कुसल गो कीस बरबेर जाको।
दूसरो दूत पन रोपि कोप्यो सभा,
खर्ब कियो सर्ब को गर्व थाको॥”
दास तुलसी समय बदति मयनंदिनी,
'मंदमति कंत! सुनु मंत म्हाको।
तौलौं मिलु बेगि नहि जौलौं रन रोष भये,
दासरथि बीर बिरुदैत बाँको'॥

अर्थ―वन को उजाड़कर, नगर को जलाकर, तुम्हारे लड़के को मारकर, जिसका बड़ा बली बन्दर साफ़ निकल गया; दूसरे दूत ने क्रोध से सभा में प्रण करके पैर को रोपा और तुम सबको छोटा कर दिया, सबका ग़रूर लचा दिया। तुलसीदास कहते



*पाठान्तर―सीस।
†पाठान्तर―धानी = राजधानी।