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कविवचनसुधा।


मृगझुण्ड पर भूषन भुसुण्ड पर जैसे मृगरान है । तेज तिमिरस पर कान्ह निमि कस पर त्यों मलेच्छ बंस पर शेर शिवराज है।

घोड़न गोंदाय सब धरती छोडाय लीन्ही देश ते निकारि धर्म द्वारा दै भिखारी से । साहू के सपूत समबन्धी शिवराज वीर केते बाद- शाह फिरें बन बन बनचारी से ॥ भूपन बखानै केते दीन्हे बन्दिखाने केते केते गहि राखै सख सैयद बजारी से । भहतौ से मुगल महाजन से शाहजादे डाँड लीन्हों पकरि तें पठान पटवारी से ॥

कत्ता की कराकरी चकत्ता को कटक कूटो सो तो शिवराज कीन्ही अकथ कहानियां । भूषन मनत तेरे धौमा की धुकार सुनि दिल्ली औ बिलाइति लौं सकल बिललानियां ॥ आगरे अगारन लौ फादती पगारन सभारती न बारन मुखन कुम्हिलानियां । कीची कहै यो करौ गरीबी कहै भागि चली बीत्री बिना सूचनसु नीबी गहे रानिया ॥ ८१ ॥

सेवा भूमिपाल बीर कत्ता के सकत तो रूम के चकत्ता को संका सरसात है । काशमीर काबुल कलिङ्ग कलकत्ता सवै कुल्ल कर- नाटक की हिम्मति हेरातु है। बलख विहार बङ्ग व्याकुल बलोच बीर बारही विलायत विलात विललात है। तरी धाक धुंधुर धग में धुंसि धाम धाम अंधाधुन्ध आंधी सी धधात दिन रात है ॥ ८२ ॥

गरुड़ को दावा सदा नाग के समूहन पै दावा गज-युत्थन पै सिंह सिरताज को। दावा पुरहूत को पहारन के कुलपर दावा ज्यों पक्षिन के गन पर बाज को || भूषन अखण्ड नवखण्ड