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कविवचनसुधा।

कबित्त।

दौरि दौरि घोरि घोरि घोरि कोरि मेघ यों दिसा दिमानि सासि कै निसासि के दिनेस के। बलाक दन्त झेलते मनोपहार पेलते सो औध ज्यों पठेवटे गनेस के अदेस के॥ घूमि घूमि झूमि झूमि चूमि चूमि भूमि को जुटै छुटै हुटै बुटै मुटै लुटै रसेस के। मरे नदी सकुण्ड से झरैं फुहार सुड से अरण्य झुड झुड से बितुण्ड से सुरेस के॥८॥

सोनहरे सेल्हीदार तेलिआ लबौरी लाल सबुजा सुरङ्ग किसमिती सुर खेले के। सन्दली सँजाफी सिरगा समुन्द अबलखी बीर तागरा दराज मोल औ महेले के॥ खिङ्ग चम्भा चाकगुली केहरी चीनी नुकरा मुसकी कल्यान औध आहे मनरेले के। पानगति पेले नम फेले मेघमेले कीन बेले अलबेल बाजी इन्द्र के तबेले के॥६॥

काबली सिराजी लक्का लोटन गिरहबान जोगिआ पटैन चपचीनी लीला लाल है। गोला कलपेटि आनि सावरा सुवेसराजा गमसकी ठठीर चोवा चंदन मराल हैं॥ तामड़ा पिलङ्ग दो पहरबाज धरिआ भभूरा कौडिन सुरुख औध उपमाल हैं। सोहै मेघमाल ये बहाल अन्तराल सुरपाल के कपोतनाल कैधों ये बिसाल हैं॥१०॥

सुरुख सहाबी सूहे सन्दली सन्दली स्याह सफतालू सोसनी सुरङ्ग सजवाले हैं। सबुज सोनहरा सगरफरा समेत साफ सरब-