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कविचचनसुधा।

हमन गुरुज्ञान है आलम हमन को नामदारी क्या २ ॥ जो बिछुड़े हैगे प्यारे से भटकते दरबदर फिरते । हमारा यार है हम में हमन को बेकरारी क्या ३ ॥ न पल बिछुड़े पिया हमसे न हम बिछुड़े पियारे से । जहां यह प्रीति लागी है तहां फिर इन्तजारी क्या ४ ॥ पिये रसप्रेम मतवाला फिकर की क्या जिकर कीजै । जो जानत है सबन घटकी उसे ज़ाहिर पुकारी क्या ५ ॥ कबीरा इश्क मत्कुकरा गरूरी दूर कर दिल से । य चलना राह नाजुक है हमन सिर बोझ भारी क्या ॥

राग होली।

सत सग रंग भेद ना जाना । बाजीगर की आतशबाजी देखत मन ललचाना । तन मन धन योबन मदमाती भूली ठौर ठिकाना, पिया घर ना पहिचाना शालरिकाई लरिकन सँग खाई ज्वान भये अभिमाना। भव दुखरोग ग्रस्यो बिरधापन आयो यम परवाना, सजन गृह कीन्ह पयाना २॥ जन्म कर्म धिरकार सखीरी पतिहित ब्रत नहिं ठाना । नेह निबाह मुभिरि पीतम को जो न हृदय हरषाना, ताहिं जड़ जानु पखाना ३॥ साहबदीन सदा सुख सङ्गी प्रभु सुन्ना मनमाना । द्वै अक्षर सुमिरण सुभ सङ्गति मागु यही बरदाना, दया करि दे भगवाना ४ ॥ ६६ ॥

सँभरि होली खलिये रघुबीर । श्रावत है श्री जनक-नन्दि-नी सङ्ग सखिन की भीर १॥ त्यहि अवसर तहँ आइ गये तब लखनलाल रणधीर । बोरि दई सारी चूनरिया महरानी जी की ,