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कविवचनसुधा ।


मोहिं तजि मोहने मिल्यो है मन मेरो दौरि नैनहूं मिले हैं दोख दोख साँवरे शरीर। कहै पदमाकर त्यों तान में सु कान गये हो तो रही जकि थाके मूली सी भ्रमी सी बीर ॥ येतो निरदई दई इनको न दया दई ऐसी दशा भई मेरी कैसे घरों तन धीर । होतो मनहूं के मन नैनंहू के नैन जो पै कानन के कान तो ये जानते पराई पीर ॥२०॥

प्रात उठि मज्जम के मुदितं महेश पूजि षोडस प्रकार के विधान विधि और की। अवाहन आदि दे प्रदक्षिणा परी है पाँय दोऊ कर जोरि सिर ऊपर निहोर की ॥ आरसी अँगूठी मध्य लख्यो प्रतिबिम्ब प्यारी मनै रघुनाथ जरदाई मुख कोर की। मेरी प्रीति होय नन्दनन्दन सो आठौं याम मोसो जनि प्रीति होय नन्द के किशोर कीं ॥ २१ ॥

जैसी छवि श्याम की पगी है तेरी आँखिन में वैसी छवि तेरी श्याम-आँखिन पगी रहै । कहै पदमाकर ज्यों तान में पगी है त्योही तेरी मुसकानि कान्ह प्राणन पगी रहे ॥ धीर धर धीर घर कीरतिकिशोरी मेंई लगन इत उतै बराबर जगी रहै। जैसी रट तोहिं लागी माधव की राधे ऐसी राधे राधे राधे रट माधवे लगी रहै ॥ २२ ॥

एकै साथ धाये नन्दलाल श्री गुलाल दोऊ हगन गये री भरि आनन्द मढे नहीं । धोय धोय हारी पदमाकर तिहारी सौह अबतो उपाय एको चित्त पे चढ़े नहीं। कहां आवें कहां जाय कोसो कहै कौन सुनै कोऊ तो बताओ जासों दरद बढ़े नहीं ।