पृष्ठ:कविवचनसुधा.djvu/७१

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कविवचनसुधा।

छोटा काफ-करो सुगुल दिनरैन यही दिल अन्दर इश्क इलाही का। ईमान मुसल्लम मौला से मजहब छोडो गुमराही का ।। इस हत खत में बीज बो मत जोतो पैड़ा पाही का । सुख सोओ रामसहाय सदा दुख मेटो अावा नाही का ॥ २६ ॥ गाफ़-गिरह भरम की छूट गई तब जी जगदीश, न दूजा है । नेह नेमान रु ज्ञान गुसुल परतीति प्रेम का पूजा है ॥ नहिं नाप ताप नहिं और आप नहिं परगट है नहिं गूना है । श्रीरामसहाय दया सतगुरु का प्रेम पहेला बूझा है ॥ २७ ॥ लाम-लबालब जाम हुआ तब क्यों न होय यह छलक २ । खिलरही चांदनी चारि तरफ महबूब क जिलावा झलक २ ॥ असमान इश्क से घूम रहा अकसर जमीन है थलक थलक । दिल डुत्रि के रामसहाय देखि दरिया मुहीत हे हलक २ ॥२८॥ मीम-मस्त मजाख फारों का इसलाम कुफुर से न्यारा है । ह्यां दाल दुई को असर नहीं सब एक में एक पसारा है ॥ स्थावर जङ्गम औ जीव जन्तु नग भांति भांति गुलजारा है । आसक सहाय मन मुर्दो ने मजहब को मजहब मारा है ॥२२॥ नू-नूर जमीं असमान अग्नि वह नूर पौन औ पानी है । रवि चन्द नछत्रहिं नूर नूर सब माया नूर निसानी है ।। जवि नूर औ सीव नूर निज नूर ज्योति निर्बानी है । देखो सहाय सूरति समाय सब सृष्टि नूर से सानी है ॥ ३० ॥ वाव-वही वही सव वही वही वह वारपार भरपूर रहा । शिरमध्य समस्त मरेज सदां इस नूर में चकनाचूर रहा ॥