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कविवचनसुधा।

भेरी भेकन बजाई है। कोकिल अलापचारी नीलकण्ठ नृत्यकारी पौन बीनधारी चाटी चातक लगाई है ॥ मनिमाल जुगनू ममारख तिमिर थार चौमुख चिराग चारु चपला जनाई है। बालम बिदेस नये दुख को जनम भयो पावस हमारे ल्याई विरह बधाई है ॥ ८॥

कोकिल के गावन की धुरवान धावन की बिज्जु चमकावन की पावन की परसनि । मदन सतावन की पीरी तन छावन की अवधि बितावन की नैनन की तरसनि ॥ शिवनाथ चावन की चित्त ललचावन की उभी हंस कावन की बिरह की भरसनि । प्रीतम के प्रावन की हँसि उर लावन की सुधि सरसावनि की सावन की बरसनि ॥९॥

फुही फुही बूंदै झरै बीर बारिबाहन तें कुहू कुहू सुनि परै कूक कोकिलान की । ताही समै श्यामा श्याम झूलत हिंडोरे चढ़ि वारौं छबि कोटिन मै रतिपंचवान की ।। कुण्डल लकट सोहै भृकुटी मटक मोहै अटकी चटक पट पीत फहरान की । झूलति समै की सृधि भूलति न हूलति री उझकनि झुकनि झकोरनि भुजान की ॥ १० ॥

मोर को मुकुट शीशभाल खौरि केसरि की लोचन विशाल लखि मन उमहत है । मैन के से केश श्रुतिकुण्डल बखत बेस झलक कपोल लखि थिर ना रहत है ॥ कुलकानि धीरज मलाह मतवारे दाऊ मदन झकोर तन तीर ना गहत है । श्याम छबिसागर में नेह की लहर बीच लाज को जहान आज बूड्न चहत है ॥ ११ ॥