पृष्ठ:कविवचनसुधा.djvu/८

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कविवचनसूधा।

सो पेखे प्रेम पायक सो नायक नवीन के । सांचे सो अमीन के अमीन मानो मीन के सराहै को खगीन के मृगीन पन्नगीन के।।२५॥

जैसे खरे कुन्द से सगे से रसबुन्द के पगे से रातिद्वन्दके जगे से कुंजतार के । मालती मुकुर मोतिया के माल मुरि जात दुरिजात चौका पै चमेली सुकुमार के || दन्तपंक्ति प्यारी की विसाल कवि हर्दयाल उपमा रसाल न मराल भषुहार के । साचे सो अनार के अनार मानो मारके सराहे कौन चार के रसाल बिज्जसार के २६

तमतम तामस रसादिपति तोयद सी नीलकनटन पै सुजट प्रजुटी सी है। जनपति कन्दरप दीपतिछटा सी छांह हाटक फाटक ओप चटक मटी सी है ॥ कचकुच दुबिच बिचित्र कृतवत बक छूटी लट घट पटतट लपी सी है। विरह असुभ्रपक्ष ती-तन प्रदोष पाथ पन्नगी पिनाकी पग पूजि पलटी सी है ॥ २७ ॥

जाको जो स्वभाव सोतो टरत न सौ उपाउ तिल पचि ताउ जोपै निपटि अपान है । लालकी कुचालि चालि है। छिपाय हरबाल और ब्रलबाल तो बजावती निसान है ॥ कित हित बातन में हित बचनाय धाय राखत सयान जौ न भाषत निदान है। मौलिसिरी माधवी औ मालती मधूकन पै ठोकत फिरत सो मधूक रसमान है ॥ २८॥

सवैया ।

कंज से सम्पुट सोहैं खडे गड़ि जात हिये जनु कुन्त की कोर हैं।

मेरु हैं पै हरि हाथ में आवन चक्रवती पै बड़ेई कठोर है ॥