पृष्ठ:कविवचनसुधा.djvu/९

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कविवचनसुधा।


मावती तेरे उरोजन मैं गुन दास लखै कछु औरही अोर हैं। शम्भु हैं पै उपजावें मनोज सु बृत्त हैं पैपरचित्त के चोर है २९

कवित्त।

लागी डीठि लगन लजान लागी लोगन को लंक लागी लचन लोमान लागे पजनेख । चम्पक प्रसून दुति कज कलिका से गात और औरै रङ्गन सु अङ्गन परत देख ॥ कसमसे कसे उर उकसे उरोजन पै उपटत कंचुकी की तुरुप तिरीछी तेख । उदया सु अस्ताचल दूनो कोर दाबि मानो दीपति नवीन पथ रविश्य चक्र- रेख ॥ ३० ॥

ठाढी खण्ड तीसरे रँगीली रङ्गरावटी में ताकी छवि ताकि छकि रह्यो नँदनन्द है । कालिदास बीचिन मैं सोभा की दरीचीन मैं इन्दु की मरीचीन मैं झलक अमन्द है । लोग लखि भरमें कहा धौं यहि घर मैं सुजगमगै रगमग जोतिन की कन्द है। लालन की माल है कि मालन की जाल है कि चामीकर चपला कि रवि है कि चन्द है ॥ ३१॥

कैधौ सिसुताई के सम्याने ताने सुन्दर ये कैधौं सुधराई पट कूट कि है लाज की । कोकसाल कोक है कि कानन के गुम्मन कि बलिभद्र कोमल कुलह काम बाज की ॥ मोहनी की जाल कि उचाल इमि कुम्भन की डारी है अँवारी के जवन गजराज की। गोरे गोरे गोल कुच तेरे नील किंचुकी कि पहिरे सनाह रतिरन के समाज की ॥ ३२॥