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पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/१११

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'केशवदास' कहते है कि ओडछा नगर के आस-पास तीस कोस तक 'जो तुङ्गारण्य' नाम का वन है, वह शत्रुओ के लिए अजीत है अर्थात् शत्रु उसे नहीं जीत सकते। वह जङ्गल विध्य वन का भाई सा प्रतीत होता है और वहाँ बहुत से हाथी, बाघ, बन्दर और सूअर रहते है तथा वह जङ्गल भीलो के लिए निडर स्थान है। (वहाँ लुटेरे भील बिना किसी डर के छिप सकते है)। यमराज के दल अथवा जामवन्त के गण जैसे भैसे वहाँ हैं और स्वच्छद विचरने वाले रीछो का वह मित्र है अतएव उन्हे सुख देनेवाला है। वहाँ के पहाड अग्नि युक्त है और वहाँ सिंधु नदी बहती है इसलिए ऐसा जान पडता है कि वह वन श्रीशकर के गङ्गा युक्त जटा जूट के समान पवित्र है क्योकि उनके मस्तक पर भी अनल और गङ्गाजी हैं।

बाग वर्णन

दोहा

ललित लता, तरुवर, कुसुम, कोकिल, कलरव, मोर।
बरनि बाग अनुराग स्यों, भँवर भँवत चहुँ ओर॥८॥


सुन्दर लताए, पेड, पुष्प, कोयल, कबूतर और मोर पक्षी तथा चारो ओर घूमते हुए भौंरो का उल्लेख करते हुए अनुरागपूर्वक बाग का वर्णन करना चाहिए।

उदाहरण

(कवित्त)

सहित सुदरशन करुणा कलित कम,
लासन बिलास मधुवन मीत मानिये।
सोहिये अपर्ण रूप मंजरी और नीलकंठ,
"केशौदास" प्रगट अशोक उर आनिये।
रंभा स्यौ सदंभ बोलै मंजु घोषा उरबसी,
हंस फूले सुमन स सब सुख दानिये।
देव को दिवान सो प्रवीणराय जू को बाग,
इन्द्र के समान तहाँ इन्द्रजीत जानिये॥९॥