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पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/१२९

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(६) शिशिर वर्णन

दोहा

शिशिर सरस मन वरणिये, देखत राजा रक।
नाचत गावत हॅसत दिन, खेलत रैनि निशंक॥३७॥

'शिशिर ऋतु' मे राजा से लेकर रक तक का मन प्रसन्न दिखलाई पडता है और वे दिन-रात निशक होकर नाचते गाते और हँसते है, इसलिए इस ऋतु मे इन्हीं का वर्णन करना चाहिए।

उदाहरण

कवित्त

सरस असम सरि, सरसिज लोचनि विलोकि,
लोक लीक लाज लोपिये का आगरी।
ललित लता सुबाहु जानि जून ज्वान बाल,
बिटप उरनि लागै उमगि उजागरी।
पल्लव अधर मधु पीवत ही मधुपन,
रचित रुचिर पिक रुक सुखसागरी।
इति विधि सदागति बास बिगलित गात,
शिशिर की शोभा किधौ बारिनारि नागरी॥३८॥

यह शिशिर ऋतु की शोभा है या चतुर बारिनारि (गणिका) है? शिशिर ऋतु मे जिस प्रकार सरस (अधिक या ऊँचे) असम जो बराबर के नहीं अर्थात् नीचे) सब बराबर हो जाते है (एक साथ ऊँच नीच का भाव छोड कर होली खेलते है)। कमल जैसे नेत्र वाली स्त्रियाँ लोक-मर्यादा तथा लज्जा को लुप्त करने में निपुण हो जाती है। सुन्दर लताए ही इस शरद ऋतु को बाहे है, जो बूढे, जवान तथा बाल वृक्षो से उमग मे भरी हुई लपटती है। नये पत्ते हो इस ऋतु के ओठ है। भौरो के हृदय-मधु को पीते ही अनुराग से रग जाते है और कोयल की ध्वनि सुख उत्पन्न करने वाली होती है। शिशिर मे ऐसी