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राज पत्नी वर्णन।

दोहा

सुन्दरि, सुखद, पतिव्रता, शुचि रुचि, शील समान।
यहिविधि रानी वरणिये, सलज, सुबुद्धि, निधान॥६॥

रानी को सुन्दरी, सुख देनेवाली, पतिव्रता, शुचिरुचि (पवित्र (रुचिवाली) शीलवती, समान (मान का ध्यान रखनेवाली), सलज, लज्जाशीला) और सुबुद्धि-निधान (अत्यन्त बुद्धिमती) वर्णन करना चाहिए।

उदाहरण

कवित्त

माता जिमि पोषति, पिता ज्यों प्रतिपाल करै,
प्रभु जिमि शासन करति, हेरि हियसों।
भैया ज्यों सहाय करै, देति है सखा ज्यों सुख,
गुरु ज्यों सिखावै सीख, हेत जोरि जियसों।
दासी ज्यों टहल करै, देवी ज्यों प्रसन्न ह्वै,
सुधारै परलोक लोक नातो नहिं बियसों।
छाके हैं अयान मद छिति के छितीश छुद्र,
और सो सनेह करै छोड़ि ऐसी तियसों॥७॥

जो रानी (अपनी प्रजा और सेवक वर्ग को) माता के समान पालती है, पिता की तरह उनकी देख-भाल करती है तथा स्वामी की तरह उनपर शासन करती हुई भी हृदय से उन्हे अपना समझती हैं। जो परिवार वर्ग के लोगो की) भाई की तरह सहायता करती है मित्र की तरह सुख देती है, गुरु की भाँति मनसे प्रेम पूर्वक उपदेश देती है। जो रानी (अपने पति की) दासी की तरह टहल सेवा करती है, और देवी की भाँति प्रसन्न होकर लोक-परलोक दोनो को सुधारती है तथा किसी दूसरे से सम्बन्ध नहीं रखती। ऐसी पत्नी को छोड़कर जो राजा