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पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/१३८

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आपनी उकति अति ऊपरी दै औरनिकी,
दूर दूर दुरी मति लै लै बशकीने है।
'केशौदास' रामदेव देश-देश अरिदल,
राजनि को देखिये को दूत दृगदीने हैं॥१६॥

जो मित्र तथा अमित्रो को पहचानने तथा देश काल के अनुसार अपनी बुद्धि के बल से जानने मे परम चतुर है। जो अपना भेद तो ऊपरी ढङ्ग से बताते है और दूसरो अर्थात् शत्रुओ का दूर-दूर तक छिपा हुआ भेद ले-लेकर, वश मे कर लेते है। 'केशवदास' कहते हैं श्री रामचन्द्र जी देश-देश के बैरी राजाओ को देखने के लिए दूत रूपी आँखे लगाए रहते है। (अर्थात् उन्हीं के द्वारा सब का हाल जानते रहते है)

मत्रीवर्णन

दोहा

राजनीतिरत, राजरत, शुचि सरवज्ञ, कुलीन।
क्षमा, शूर, यश, शीलयुत, मंत्री मत्र प्रवीन॥१७॥

मत्री को राजनीति का ज्ञाता, राज-भक्त, पवित्र मन वाला, सर्वज्ञ कुलीन (उच्चकुलोत्पन्न), क्षमाशील, शुर (वीर), यश और शील युत अर्थात् यशस्वी और शीलवान तथा मन्त्र (सम्मति) देने मे प्रवीण होना चाहिए।

उदाहरण (१)

सवैया

केशव कैसहूँ बारिधि बांधि, कहाभयो रीछनि जो छिति छाई।
सूरज को सुत बालि को बालक, को नलनील कहौ केहि ठाई॥
को हनुमत कितेकबली, यमहूँ पर जोर लई नहि जाई।
भूषणभूषण दूषणदूषण लंक विभीषण के मत पाई॥१८॥