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पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/१५५

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नवां-प्रभाव

[विशिष्टालंकार वर्णन]

जानि, स्वभाव, विभावना, हेतु, विरोध, विशेष।
उत्प्रेक्षा, आक्षेप, क्रम, गणना, आशिष लेष॥ १ ॥
प्रेम, सुश्लेष, सभेद है, नियम विरोधी मान।
सूक्षम, लेश, निदर्शना, ऊर्ज सुर सब जान॥ २ ॥
रस, अर्थातरन्यास है, भेद सहित व्यतिरेक।
फेरि अपह्न ति उक्ति है, वक्रोकति सविवेक॥ ३ ॥
अन्योकति व्यधिकरन है, सुविशेषोकति भाषि।
फिरि सहोक्तिको कहत है, क्रमही सों अभिलाषि॥ ४ ॥
व्याजस्तुति निदा कहै, व्याजनिदा स्तुतिवंत।
अमित, सुपयांयोक्ति पुनि, युक्ति, सुनै सबसंत॥ ५ ॥
सुसमाहित जुप्रसिद्ध है, और कहे विपरीत।
रूपक, दीपक, भेदपुनि, कहि प्रहेलिका मीत॥ ६ ॥
अलंकारपरवृत्त कहै, उपमा, जमक, सुवित्र।
भाषा इतनै भूपणनि, भूषित कीजै मित्र॥ ७ ॥

हेमित्र! स्वभाव, विभावना, हेतु, विरोध, विवेष, उत्प्रेक्षा, आक्षेप क्रम, गणना, आशिष, प्रेम, श्लेष (नियम और विरोधी, सूक्ष्म, लेष, निदर्शना, ऊर्जस्वर, रसवत, अर्थान्तन्यास, व्यतिरेक अपन्हुति, उक्ति-(वक्र, अन्य, व्याधिकरण, विशेष और सह) व्याजस्तुति, व्याजनिन्दा अमित, पर्यायोक्ति, युक्ति, समाहित, प्रसिद्ध, विपरीत, रूपक, दीपक, प्रहेलिका, परिवृत्त, उपमा, यमक और चित्र अलंकारो से, अपनी भाषा को सजाइए।