पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/१८०

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सुनि सुखद-सुखद सिख सीखि पति, रति सिखई सुख साख में।
वर विरहिन वधत विशेषकरि कामविशिख वैशाख में॥२५॥

('केशवदास' नायिका की ओर से कहते है कि) वैशाख मे आकाश और पृथ्वी सभी सुगन्ध से सुगन्धित हो जाते है। वायु मकरद बिन्दु को धारण करके धीरे-धीरे बहने लगती है। प्रत्येक दिशा सुशोभित हो जाती है, और उनका प्रत्येक भाग पराग से पूर्ण हो जाता है। भौंरा (भ्रमर) औरविदेशी जन, मारे सुगन्ध के, अन्धे और बावले (कामोन्मत्त) हो जाते हैं। इसलिए हे प्रियतम! मेरी सुखदायिनी शिक्षा को (जिसे प्रेम ने) आनन्द के समय मुझे सिखाया है, सुनिये कि 'वैशाख' मे पति से बिछुडी हुई स्त्री को, काम के बाण, विशेष रूप से सताते है।

३–जेठ वर्णन

एक भूतमय होत भूत, भजि पंचभूत भ्रम।
अनिल, अंबु, आकाश, अवनि, ह्वैजात आगिसम॥
पथ थकित मढ मुखिन सुखित सर सिधुर जोवत।
काकोदर करि कोश, उदर तर केहरि सोवत॥
पियप्रबल जीव इहिविधि अबल, सकल विकल जल थल रहत।
तजि केशवदास उदास मति, जेठमास जेठे कहत॥२६॥

जेठ के महीने मे सारी सृष्टि एक भूत मय हो जाती है और उसके पचभूतमय होने का भ्रम भाग जाता है। वायु जल, आकाश, और पृथ्वी सभी अग्नि जैसे हो जाते है। मार्ग बन्द हो जाता है और तालाबो को सूखा हुआ देखकर हाथी मद से मुक्त हो जाते है अर्थात् उनका मतवालापन जाता रहता है। उनकी सूड की कुण्डली मे साप तथा पेट के नीचे सिंह सोता रहता है। (गर्मी के मारे उन्हे अपने वैर का ध्यान ही नहीं रहता)। हे पतिदेव! इस तरह जल और थल के सभी प्रबल जीवगण निर्बल हो जाते है। (केशवदास पत्नी की ओर से कहते हैं कि) इसी लिए बडे लोग कहते है कि 'जेठ के महीने, मे घर से उदास (विरक्त) होने के विचार को छोड देना चाहिए।