ग्यारहवां प्रभाव
८-क्रम अलकार
आदि अन्त भरि वर्णिये, सो क्रम केशवदास ।
गणना गणना सों कहत है, जिन की बुद्धि प्रकास ॥१॥
'केशवदास' कहते है कि जहाँ आदि का शब्द अन्त मे और अन्त का
शब्द आदि मे लेकर वर्णन किया जाय, वहाँ क्रम, अलकार होता है।
जो बुद्धिमान लोग है, वे 'गणना' सूचक शब्दो वाले वर्णन को 'गणना'
अलकार कहते है।
उदाहरण-१
छप्पय
धिक मंगन बिन गुणहि, गुण सुधिक सुनत न रीझिय ।
रीझ सुधिक बिन मौज, मौज धिक देत सुखीझिय ॥
दीबो धिक बिन सॉच, सॉच धिक धर्म न भावै।
धर्म सुधिक बिन दया, दया धिक अरिकह आवै॥
अरि धिक चित न शालई, चित धिक जहें न उदारमति ।
मतिधिक केशव ज्ञान बिनु, ज्ञान सुधिक बिनु हरिभगति ॥२॥
बिना किसी गुण को दिखलाये हुए, योही याचना करने को धिक्कार
है । जिस गुण को सुनकर कोई न रीझे वह गुण भी धिक्कारने योग्य है ।
वह रीझ भी धिक्कारने योग्य है जो बिना मौज (भेंट, उपहार) की हो ।
उस मौज को धिक्कार है जिसे देते समय खीझ या मु झलाहट उत्पन्न
हो। उस दान को धिक्कार है, जो सत्य के लिए न हो। उस सत्य
को धिक्कार है, जिसे धर्म अच्छा न लगे। उस धर्म को धिक्कार है, जो
दया रहित हो । उस दया को धिक्कार है जो बैरी के ऊपर दिखलायी
पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/१८७
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