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सात रसातल (वल, अतल, वितल, सुतल, तलातल, रसातल
और पाताल), लोक (भू , भुवः, स्वः, मह जन , तप और सत्य।
मुनि (मरीचि, अत्रि, अङ्गिरा, पुलस्त्य, पुलह, क्रतु और वशिष्ठ',
द्वीप (जम्बू, लेक्ष, शाल्मलि, कुश, कौंच, शाक और पुष्कर), सूर्य के
घोडे वार, समुद्र (क्षीर, क्षार, दधि, मधु, घृत, सुरा, और इक्षु), स्वर
स, रे, ग, म, प, ध, नि), पर्वत (मेरु, हिमालय, उदयाचल, विध्य,
लोकालोक, गन्ध मादन और कैलाश), ताल (चार मेरु पर्वत पर और
मानसर, विन्ध्यसर और पपासर), वृक्ष (स्वर्ग के पाच वृक्ष और, अक्षय-
वट तथा कैलाशवट), अन्न (गेहूँ यव, धान, चना, उर्द, मूग और
अरहर), ईतिया, (अति वृष्टि, अनावृष्टि, मूषक, शुक, शलभ, स्वचक्र,
और परचक्र), करतार (श्रीब्रह्मा, श्री विष्णु, श्रीशिव, प्रकृति, सत्व, रज
और तम) सात (गायत्री, उष्णिक, अनुष्टुप, वृहती, पक्ति त्रिष्टुप
और जगती पुरी (अयोध्या, मथुरा, माया, काशी, काँची, अवन्तिका
और द्वारका', सात प्रकार की त्वचा, सुख, खान, पान, परिधान, झान,
गान, शोभा और सयोग), चिरजीव अश्वत्थामा, बलि व्यास,
हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य और परशुराम), ऋषि ( कश्यप, जमदग्नि,
विश्वामित्र, वशिष्ठ भारद्वाज और गौतम), सात (ब्राह्मण क्षत्रिय,
वैश्य, शूद्र, अन्त्यज और यवन नर, सात (ब्राह्मी, माहेश्वरी, कौमारी,
वैष्णवी, बाराही, इन्द्राणी और चामुण्डा) मातृकाएँ और सात (रस,
रक्त, मास मेद, अस्थि, मज्जा और वीर्य) धातुए ये सात सख्या के
सूचक माने जाते है।
आठ सूचक
दोहा
योगअंग, दिगपाल, वसु, सिद्धि, कुलाचल चारु ।
अष्टकुली अहि, व्याकरण, दिग्गज, तरुनि बिचारु ॥१६॥
योग के (यम, नियम आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, ध्यान, धारणा
और समाधि) आठ अठ, दिग्पाल (इन्द्र, अग्नि यम, नैऋत, वरुण,
पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/१९५
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