जहाँ एक पद ( शब्द ) को काट कर दूसरा झब्द बना कर अर्थ किया
जाय, वहाँ 'भिन्नपद श्लेष' जानना चाहिए और जहाँ पर शब्दो के भिन्न-
भिन्न अर्थ किये जाते है, वहाँ उपमाश्लेष कहलाता है।
उदाहरण (१)
उपमाश्लेष
दोहा
वृषभवाहिनी अंग उर, वासुकि लसत नवीन ।
शिवसँग सोहत सर्वदा, शिवा कि रायप्रवीन ॥३७॥
उदाहरण
भिन्नपद श्लेष
राजै रज 'केशौदास' टूटत अरुण लार,
प्रतिभट अकन ते अक पै सरतु है।
सेन सुन्दरीन के बिलोक मुख भूषणनि,
किलकि किलकि जाही ताही को धरतु है।
गाढ़े गढ़ खेलही खिलौननि ज्यों तोरि डारे,
जग जय जश चारु चंद्र को अरतु है।
चंद्रसेन भुवपाल आगन विशाल रण,
तरो कर बाल बाल लीला सी करतु है ॥३८॥
हे चन्द्रसेन राजा | आपकी तलवार विशाल रण-भूमि मे बालको
जैसी लीला करती है, क्योकि जिस प्रकार ( केशवदास कहते है कि )
बालक वूल से सन जाता है, उसी प्रकार आपकी तलवार भी रजोगुण
मे सन जाती है। जिस प्रकार बालक के मुह से लाल-लाल टपकती है,
उसी प्रकार आपकी तलवार से लाल-लाल लार अर्थात् रक्त टपकता
है। जैसे बालक एक गोद से दूसरी गोद मे जाता रहता है वैसे आपकी
तलवार भी एक की गोद से दूसरे की गोद म जाती है अर्थात् एक
पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/२११
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