जात है विलीन है दुनी के दान देखि राम-
चन्द्र जी को दान कैधो केशव कृपान है ॥४०॥
'केशवदास' कहते है कि यह श्री रामचन्द्र जी का दान है या उनकी
तलवार है। क्योकि जिस प्रकार दान मे पहले श्रेष्ठ ब्राह्मणो को सोने
के आभूषणो सहित इतने घोडे दिये जाते है कि जिनका कोई प्रमाण
( सीमा ) नहीं होता, उसी प्रकार तलवार भी घोडो पर सवार क्षत्रिय
सजाओ पर चलती है और वह सुन्दर रन की अर्थात् चमकीली तथा
जिसका कोई प्रमाण नहीं है अर्थात् बहुत लम्बी है। जिस प्रकार दान
सजल ( जल के सहित ) तथा सहित (प्रेम पूर्वक ) होता है और
अङ्ग (शरीर ) मे उत्साह के साथ प्रसङ्ग पर प्रेम रखकर दिया जाता है,
उसी प्रकार तलवार सजल ( पानीदार ) अङ्ग । मूठ ) सहित होती है
और विक्रम का प्रसङ्ग उपस्थित होने पर अपना रङ्ग दिखलाती है। जिस
प्रकार दान ( कोष ) खजाने से निकालकर धैर्य पूर्वक दिया जाता है उसी
प्रकार तलवार भी कोष (मियान) से निकलकर चलाने वाले को धैर्य
देती है। जिस प्रकार दान दीनो को दयालु होकर दिया जाता है और
इतना दिया जाता है प्रतिद्वन्दी दानी को खटकता है, उसी प्रकार तलवार
कायरो पर दया प्रकट करती है और शत्रुओ को खटकती है जिस प्रकार
दान कीर्ति का प्रतिपालन करता है, उसी प्रकार तलवार से भी कीर्ति
[प्राप्त होती है इसे सारा ससार जानता है । जिस प्रकार उनके दान को]
देखकर सब दान लुप्त हो जाते हैं उसी प्रकार उनकी तलवार को
देखकर सब का मद उतर जाता है।
उदाहरण-२
भिन्न क्रिया श्लेष
कछु कान्ह सुनौ कल कूकति कोकिल काम की कीरति गावन सी।
पुनि बात कहै कलभाषिनि कामिनि केलि कलान पढ़ावत सी॥
पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/२१३
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