सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/२२६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(२०९)

खींच-खींच कर थक गया और वस्त्र कम न हुए। जब ब्रह्मा के वारण (ब्रह्मास्त्र) ने सबका बल लूट लिया अर्थात् नि.शक्त बना दिया, तब (चक्रसुदर्शन) द्वारा पेट मे पहुँचकर परीक्षित को बचाया था। 'केशवदास' कहते है कि यदि श्रीरामचन्द्र जी अनाथो के नाथ न होते तो क्या हाथी ग्राह के फन्दे से, अस्त्र चलाकर छूटा था?

(उक्त घटनाओ से आश्चर्य का भाव उत्पन्न होता है अत अद्भुत रसवत है)

उदाहरण (२)

कवित्त

केशौदास वेद विधि व्यर्थ ही बनाई विधि,
व्याध शवरा को, कौने सहिता पढ़ाई ही।
वेष धारी हरि वेष देख्यो है अशेष जग,
तारका को कौने सीख तारक सिखाई ही।
बारानसी वारन करयो हो वसोबास कब,
गनिका कबहि मनि कनिका अन्हाई ही।
पतितन पावन करत जो न नन्दपूत,
पूतना कबहि पति देवता कहाई ही॥६२॥

'केशवदास' कहते हैं कि वेद-विधि व्यर्थ ही बनाई गई है (क्योकि यदि वेदानुकूल चलने से ही मोक्ष मिलता तो) व्याध तथा शबरी को किसने सहिता पढाई थी (जो तर गये?) श्रीकृष्ण का रूप रखकर राजकुमारी से विवाह करने वाले श्रीकृष्ण वशधारी की जो लज्जा रखी थी, उसे भी सारे संसार ने देखा था ताड़का को त्ररक मन्त्र की शिक्षा किसने दी थी (जो वह भी तर गई)? हाथी ने बनारस मे जाकर कब निवास किया था और गणिका कब मणि करिर्णका पर स्नान करने गई थी? यदि नन्द के पुत्र (श्रीकृष्ण) पतितो का

१४